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________________ हैं, जिनसे लौकिक और पारलौकिक कामनायें पूर्ण होती हैं। जैन शास्त्रों में बताया गया है कि ऐहिक कामना वाले मंत्र अप्रशस्त होते हैं पर सामान्य जन के लिये तो ये ही मंत्र मनोवैज्ञानिकतः संतोषकारी होते हैं। यह भी माना जाता है कि गुण प्रधान मंत्र अधिक बलवान होते हैं । इसीलिये जैनों का णमोकार मंत्र प्रबलतम मंत्र माना गया है। सारणी १ में कुछ प्रमुख जैन मंत्रों के नाम और उनकी साधकतम जप संख्या दी गई है सारिणी-१ कुछ मुख्य जैन मंत्र और उनकी साधकतम जप संख्या १ णमोकार मंत्र ५ पद, ३५ अक्षर, ५८ मात्रायें, १,२५,००० (या १०८ बार प्रतिदिन) २. पंचपरमेष्ठि मंत्र - १०८ बार प्रतिदिन ३. सर्वसिद्धि मंत्र ॐ अ सि आ उ सा नमः १,२५,००० ४. लघुशांति मंत्र ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ब्लू अर्ह नमः। २१,००० ५. वशीकरण मंत्र ११,००० ६. महामृत्युंजय मंत्र ३१,०००–१,२५,००० ७. कार्य सिद्धि मंत्र १,२५,००० ८. भूत-प्रेत बाधा निवारक मंत्र ११,००० ६. रोग निवारक मंत्र १,२५,००० १०. परदेशमगन/लाभ मंत्र ११,००० ११. मनवांछित फल मंत्र १,२५,००० १२, विद्या प्राप्ति मंत्र २१,००० १३. त्रिभुवन स्वामिनी विद्या मंत्र २४,००० १४. रक्षा मंत्र १०८ १५. पासा (रमल) मंत्र ३बार १६. श्रृंभण मंत्र, मोहन मंत्र, स्तंभन मंत्र, विद्वेषण मंत्र, उच्चाटन मंत्र, १७. मारण मंत्र, पौष्टिक मंत्र ___ मंत्र, यंत्र और तंत्र के समान पारिभाषिक शब्दों के उपरोक्त सामान्य एवं रूढ़ अर्थों के अतिरिक्त उनकी परिभाषायें उनके चार रूपों को व्यक्त करती हैं- (१) व्युत्पत्तिगत (२) स्वरूपगत (३) उद्वेश्यगत और (४) क्रियागत । इस आधार पर सारिणी २ में इनके विवरण तथा अन्य विवरण भी दिये जा रहे हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001796
Book TitleJain Dharma aur Tantrik Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Occult
File Size25 MB
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