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________________ ix की शक्ति आंकी जाती है । उदाहरणार्थ, ॐ शब्द प्रणववाचक, तेजोबीज एवं सिद्धिदायक है । अ, सि, आ, उ, सा, वर्ण शक्ति, समीहित साधक, बुद्धि एवं आशा के प्रतीक हैं, नमः शब्द सिद्धि एवं मंगल वाचक है । फलतः "ओम् असिआउसा नमः" मंत्र अत्यंत शक्तिशाली एवं शक्तिस्रोत है, ऐसा विश्वास किया जाता है। इसका जाप मनोरथपूरक माना गया है। आचार्य विमलसागर जी के अनुसार जैन मंत्रों की संख्या चौरासी लाख है । इनका वर्गीकरण अनेक प्रकार से किया गया है (पठित - साधित, आसुरी - राजस - सात्विक, सृष्टि-स्थिति-संहार आदि) है । सरलतम रूप में, महापुराण के 'अनुसार मंत्र दो प्रकार के होते हैं- सामान्य और विशेष या क्रिया मंत्र। सामान्य मंत्र पूजा विधान आदि धार्मिक अवसरों पर पढ़े जाते हैं या व्यक्तिगत रूप में जपे जाते हैं। इनके अंतर्गत भूमिशुद्धि, पीठिका, काम्य, जाति, निस्तारक, ऋषिमंत्र, सुरेन्द्र मंत्र, परमराजादि मंत्र, परमेष्ठी मंत्र आदि समाहित होते हैं। पूजनादि क्रियाओं के समय इनके माध्यम से आहुतियाँ दी जाती हैं। अतः ये आहुति मंत्र भी कहलाते हैं । अन्य अवसरों पर ये क्रियामंत्र या साधनमंत्र कहलाते हैं । इनके विपर्यास में, विशेष मंत्र गर्भाधानादि लौकिक क्रियाओं की मंगलमयता के लिये प्रयुक्त होते हैं। महापुराण में इस प्रकार के सोलह मंत्रों का उल्लेख है । जिनवाणी संग्रह और अन्य ग्रन्थों में सभी प्रकार के २७ मंत्र बतलाए गये हैं । मंत्रों की शब्द शक्ति के उद्भव का आधार उनका बारंबार पाठ या जप है । विभिन्न मंत्रों की साधकतमता के लिये उनकी जप संख्या विभिन्न-विभिन्न होती है । यह १०८, ११००० या १,००००० से भी अधिक हो सकती है। स्वर्गीय आचार्य श्री सुशील मुनि ने लिखा है कि उनकी जीवन की सफलता का रहस्य णमोकार मंत्र का १,२५,००० बार का जप है। धवला १३. ५ में भी बताया गया है कि मंत्र-तंत्र की शक्ति का आधार उनकी सूक्ष्म पौद्गलिकता है । जप के समय अंतः कंपन होते हैं जो वीची-तरंग - न्याय से आकाश में भी कंपन उत्पन्न करते हैं । ये कंपन विद्युत चुम्बकीय शक्ति के रूप हैं। इनकी तीव्रता मंत्र की स्वर-व्यंजनात्मक ध्वनियां एवं जप संख्या पर निर्भर करती है एवं वर्धमान होती है। जब ये कंपन पुंज अपने उद्भव केन्द्र पर आते हैं, तब तक वे पर्याप्त शक्तिशाली हो जाते हैं । इस शक्ति का अनुभव मंत्र साधक को आश्चर्य और आहलाद के रूप में होता है। यह शक्ति लौकिक और पारलौकिक सिद्धियाँ प्रदान करती है । यही शक्ति दृष्टि, स्पर्श, विचार और मंत्रोच्चारणों के माध्यम से भक्तों को अंतःशक्ति प्रदान करती है। मंत्रों से अनेक विद्यायें सिद्ध होती हैं मंत्रों से मंत्राधिष्ठित देवता तुष्ट होकर सहयोगी बनते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001796
Book TitleJain Dharma aur Tantrik Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Occult
File Size25 MB
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