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________________ १०१ मंत्र साधना और जैनधर्म (५५) स्वप्नै शुभाशुभकथनमन्त्र 'ॐ ह्रीं अर्ह वीं स्वाहा। चन्दनेन च तिलकं कृत्वा जापमष्टोत्तरशतं कृत्वा सुप्येत रात्रौ शुभाशुभं वक्ति । चंदन से तिलक कर १०८ बार इस मंत्र का जप करने से यह रात्रि में शुभाशुभ का कथन करता है। (५६) निर्विषीकरणमन्त्र 'ॐ ह्रीं अर्ह अ सि आ उ सा क्लीं नमः।' इत्यनेन निर्विषीकरणत्वम् । (५७) पञ्चाक्षरीविद्या 'ॐ नमो जूं सः । इति पञ्चाक्षरीविद्या मन्त्रयन्त्रे करोति च । भव्यस्य शुभकल्याणं त्वेवमेव मतं बुधैः ।। कर्णिकायां त्वेक (त) त्त्वं, तत्त्वतुर्ये चतुर्दिशि। साष्टपत्रेषु सिद्धस्य, बीजं ज्ञेयं मुनीश्वरैः।। . तेजो-मायायुतं तत्त्वं, कामबीजेन संयुतम्। हुतिप्रियामूलमन्त्रं त्वेकमेव वशादिषु ।। वाऽन्यत्प्रकारमुक्त च, कर्णिकायां च देवके-। ति पदं साष्टपत्रेषु, णमोऽरिहंताणमेव च।। भूपुरं वारिसुपुर, यन्त्रकर्मारिनाशनम् । कर्मचक्रमिदं ज्ञेयं, ध्यानचक्रं परं गतम् ।। जो इस पंचाक्षरी विद्या का पाठ करता है उसका कल्याण होता है। कर्मचक्रम् ॐ नमः ध्यानचक्रम् ॐ नमः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001796
Book TitleJain Dharma aur Tantrik Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Occult
File Size25 MB
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