________________
१०० जैनधर्म और तान्त्रिक साधना लक्षं जप्तमिदं मन्त्रं वादे संतनुते जयम्। एक लाख बार जपा गया यह मंत्र वाद में विजय दिलाता है। (५१) सर्वसिद्धिप्रदमहामन्त्र
'ॐ अ सि आ उ सा नमः।
इदं मन्त्रं महामन्त्रं, सर्वसिद्धिप्रदं ध्रुवम् ।। यह महामंत्र निश्चय ही सर्वसिद्धि देने वाला है। (५२) त्रिभुवनस्वामिनी विद्या
ॐ अर्हते उत्पत उत्पत स्वाहा।' इति द्वितीया त्रिभुवनस्वामिनी विद्या। यह द्वितीय त्रिभुवन स्वामिनी विद्या है। (५३) वादजयकरीविद्या
'ॐ अग्गिय मग्गिय अरिहं जिण आइय पंचमायधरा। दुट्ठाट्टकम्मदद्धा (द्ध) सिद्धाण णमो अरिहणणेभ्यः ।। इति वादे जयं करोति।
यह वाद में जय प्रदान करने वाला मंत्र है। (५४) संघरक्षार्थ मन्त्र
"ॐ नमो अरिहंताणं धणु धणु महाधणु महाधणु स्वाहा।' इदं मन्त्रं ललाटे च, ध्येयं सत् चोरनाशनम् । करोति चैतदुक्तं वा, कम्पनैर्मुनिनायकैः ।
संघस्य रक्षार्थमिदं, ध्येयं नान्यत्रहेतुके ।। यह मंत्र ललाट में धारण करने पर चोर का नाश करता है। मुनि यदि कम्पन करते हुए इस मंत्र को बोलते हैं तो संघ की रक्षा होती है। इसका ध्यान किसी अन्य हेतु नहीं करना चाहिए।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org