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________________ मोक्षशास्त्र सटीक वैक्रियिक, तथा चार हो तो तैजस कार्मण औदारिक और आहारक अथवा तैजस कार्मण औदारिक और वैक्रियिक होते है ।। ४३॥ कार्मणशरीर की विशेषता निरूपभोगमन्त्यम् ॥४४॥ ___ अर्थ-( अन्त्यम् )अन्तका कार्मणशरीर( निरूपभोगम् ) उपभोग रहित होता हैं। उपभोग-इन्द्रियों के द्वारा शब्दादिकके ग्रहण करनेको उपभोग कहते हैं ॥४४॥ औदारिक शरीरका लक्षणगर्भसम्मूर्छनजमाद्यम् ॥४५॥ अर्थ- (गर्भसम्मूर्छनजमाद्यम् ) गर्भ और सम्मूर्छन जन्मसे उत्पन्न हुआ शरीर ( आद्यम् ) औदारिक शरीर कहलाता हैं ॥ ४५ ॥ वैक्रियिकशरीरका वर्णनऔपपादिकं वैक्रियिकम् ॥४६॥ अर्थ- ( औपपादिकं ) उपपाद जन्मसे होने वाला देव नारकियोंका शरीर ( वैक्रियिकम् ) वैक्रियिक कहलाता हैं ॥४६॥ लब्धिप्रत्ययं च ॥४७॥ अर्थ-वैक्रियिक शरीर लब्धि-निमित्तक भी होता हैं। लब्धि-तपोविशेषसे प्राप्त हुई ऋद्धिको लब्धि कहते हैं। तैजसमपि ॥४८॥ अर्थ- तैजस शरीर भी लब्धि प्रत्यय ( ऋद्धिनिमित्तक) होता हैं। नोट-यह तैजस शुभ अशुभके भेदसे दो प्रकार का होता हैं। शुभ तैजस सफेद रंगका होता है और दाहने कन्धेसे निकलता है और अशुभ 1. लब्धिप्रत्यय वेंक्रियिककी अपेक्षा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001795
Book TitleMokshshastra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorPannalal Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, P000, P005, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size12 MB
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