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मोक्षशास्त्र सटीक
अचक्षुर्दर्शन, अवधिदर्शन ये तीन दर्शन, क्षयोपशमिक दान लाभ भोग उपभोग और वीर्य ये पांच लब्धियां तथा (सम्क्त्वचारित्रसंयमासंयमाश्च ) क्षायोपशमिक सम्यक्त्व, क्षायोपशमिक चारित्र और संयमासंयम ये अठारह भाव क्षायोपशमिक भाव हैं।
क्षायोपशमिक सम्यक्त्व - अनंतानुबंधी क्रोध, मान, माया, लोभ तथा मिथ्यात्व सम्यग्मिथ्यात्व इन ६ सर्वघाति प्रकृतियोंके वर्तमानकालमें उदय आनेवाले निषेकोंका उदयाभावी क्षय तथा उन्हींके आगामी कालमें उदय आनेवाले निषेकोंका सदवस्थारूप उपशम और देशघाति सम्यक्त्व प्रकृतिका उदय होनेपर जो सम्यग्दर्शन प्रकट होता है उसे क्षायोपशमिक सम्यक्त्व कहते हैं । इसीका दूसरा नाम वेदक सम्यक्त्व भी है।
क्षायोपशमिक चारित्र- अनन्तानुबन्धी आदि बारह कषायोंका उदयाभावी क्षय तथा उन्हींके निषेकोंकी सदवस्थारूप उपशम और संज्वलन तथा नोकषायका यथासम्भव उदय होनेपर जो चारित्र होता है उसे क्षायोपशमिक चारित्र कहते हैं । इसीका दूसरा नाम सराग-संयम है।
संयमासंयम- अनंतानुबंधी आदि ८ प्रकृतियोंका उदयाभाषी क्षय और उन्होंके निषेकोंका सदवस्थारूप उपशम तथा प्रत्याख्यानावरणादि १७ प्रकृतियोंका यथासम्भव उदय होनेपर आत्माकी जो विरताविरत अवस्था होती है उसे संयमासंयम कहते हैं ॥ ५ ॥
औदयिक भावके इक्कीस भेदगतिकषायलिङ्गमिथ्यादर्शनाज्ञानासंयतासिद्धलेश्याश्चतुश्चतुस्त्र्येकैकैकै कषडभेदाः ॥ ६ ॥
अर्थ- नरक, तिर्यंच, मनुष्य और देव ये चार गति, क्रोध, मान, माया और लोभ ये चार कषाय, स्त्रीवेद, पुंवेद और नपुंसकवेद ये तीन लिंग,
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