SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 61
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मोक्षशास्त्र सटीक मिले रहनेपर पानीमें स्वच्छास्वच्छ अवस्था होती है ।कर्मोके क्षयोपशमसे जो भाव होता है उसे क्षायोपशमिक भाव कहते हैं । उदय तथा औदयिक भाव- स्थितिको पूरी करके कर्मोके फल देनेको उदय कहते हैं और कर्मोके उदयसे जो भाव होता है उसे औदयिक भाव कहते हैं। पारिणामिक भाव- जो भावंकर्मोके उपशम क्षय क्षयोपशम तथा उदयकी अपेक्षा न रखता हुआ आत्माका स्वभाव मात्र हो उसे पारिणामिक भाव कहते हैं।' भावोंके भेदद्विनवाष्टादशैकविंशतित्रिभेदा यथाक्रमम् ॥२॥ अर्थ- उपर कहे हुए पांचों भाव ( यथाक्रमम् ) क्रमसे (द्विनवाष्टादशैकविंशतित्रिभेदः ) दो, नव, अठारह, इक्कीस और तीने भेदवाले हैं ॥२॥ औपशमिकभावके दो भेद सम्यक्त्वचारित्रे ॥३॥ अर्थ- औपशमिक सम्यक्त्व और औपशमिक चारित्र ये दो औपशमिक भावके भेद है। औपशमिक सम्यक्त्व-अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया, लोभ और मिथ्यात्व, सम्यक् मिथ्यात्व तथा सम्यक्त्वप्रकृति इन सात प्रकृतियोंके 1. ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तराय इन तीन घातिया कर्मोकी उदय. क्षय और क्षयोपशम ये तीन. मोहनीय कर्मकी उदय उपशम, क्षय और क्षयोपशम ये चारों तथा शेप कर्मोकी उदय और क्षय ये दो अवस्थाएं होती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001795
Book TitleMokshshastra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorPannalal Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, P000, P005, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy