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________________ [५] भी अपने ग्रन्थोंमें उसी पद्धतिको अपनाया है। अस्तु, इन सब बातोंसे प्राकृत ग्रन्थ और आचार्य उमास्वामीका गौरव अत्यन्त बढ़ गया है। ___ मोक्षशास्त्र-तत्त्वार्थसूत्रके उपर अनेक टीकाये प्रकाशित हो चूकी हैं, जो एकसे एक उत्तम हैं। परन्तु फिर भी छात्रोंको कई विषय समझनेमें कठिनाई पड़ती थी अतः उनकी कठिनाईयों को कुछ अंशोंमें दूर करनेके लिये मैंने यह प्रयत्न किया है। पुस्तककी टिप्पणीकी, नोट, चार्ट, नकशा तथा आवश्यक भावार्थ वगैरहको सरल और रोचक बनानेका उद्योग किया गया है। साथमें पं. फूलचन्दजी सिद्धांतशास्त्री बनारस द्वारा लिखित परिशिष्ट भी संयुक्त कर दिया है जिससे स्वाध्याय-प्रेमी सजन भी यथोचित लाभ उठा सकते हैं। अल्पकालमें ही बारहवी आवृति निकालनेका जो अवसर प्राप्त हुआ है उससे हमारे पाठकोंका आचार्यश्री उमास्वामी और उनके इस अनुपम ग्रन्थरत्नपर स्वाभाविक प्रेम प्रकट होता है। यदि छात्रोंको कुछ अंशोंमें लाभ हुआ तो मैं अपने परिश्रमको सफल समझंगा। एक बात और है वह यह कि इस ग्रन्थका प्रचार देख कुछ लोगोंने इसमेंसे कितने ही अंश ले-लेकर अपनी पुस्तकोंमें आत्मसात् कर लिये है और उसपर कुछ उल्लेख भी नहीं किया है जो ठीक नहीं है। विद्वानोंमें इतनी कृतज्ञता तो चाहिये ही। प्रमाद एवं अज्ञानसे अनेक त्रुटियोंका रह जाना सम्भव है, अतः विद्वद्गण मुझे क्षमा करते हुये सौहार्दभावसे उन त्रुटियोंको सूचित करनेकी कृपा करें, जिससे आगामी संस्करणमें वे त्रुटियां न रह सकें। श्री वर्णी दि. जैन गुरुकुल मढिया, जवलपुर, (म. प्र.) वीर निर्वाण २५२७ विनीत, पन्नालाल जैन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001795
Book TitleMokshshastra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorPannalal Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, P000, P005, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size12 MB
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