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मोक्षशास्त्र सटीक भिन्न अर्थ ग्रहण करता है।
एवंभूत- जिस शब्दका जिस क्रियारूप अर्थ है उसी क्रियारूप परिणमते हुए पदार्थको जो मन ग्रहण करता है उसे एवंभूत नय कहते हैं। जैसे पूजारीको पूजा करते समय ही पूजारी कहना।'
इतिश्री उमास्वामिविरचिते मोक्षशास्त्रे प्रथमोऽध्यायः ।
प्रश्नावली
(१) तत्त्व कमसे कम कितने हो सकते हैं ? (२) सिर्फ सम्यक्चारित्रसे मोक्ष प्राप्त हो सकता है या नहीं? (३) निक्षेप किसे कहते हैं ? , (४) नय और प्रमाणमें कितना अन्तर हैं ? (५) श्रुतज्ञान पहले होता है या मतिज्ञान? (६) क्षयोपशम निमित्तक अवधिज्ञानके भेद गिनाओ। (७) मन:पर्यय और अवधिज्ञानमें क्या अन्तर है ? (८) क्या अवधिज्ञानके बिना भी मन:पर्यय ज्ञान हो सकता है ? (९) संग्रह नयका क्या स्वरूप है ? उदाहरण सहित बताओ। (१०)नय और निक्षेपमें क्या अन्तर है ? (११) क्या नय भी मिथ्या होते हैं ? यदि होते है तो कब?
2. नय और निक्षेपमें अन्तर- नय ज्ञानके भेद है और निक्षेप उस ज्ञानके अनुसार किये गये व्यवहारको कहते हैं। इनमें ज्ञान और ज्ञेय, विषयी अथवा विषयका भेद है।
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