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________________ २२] माक्षशास्त्र सटीक उत्तर सदसतोरविशेषाद्यद्दच्छोपलब्धेरून्मत्तवत्॥३२॥ अर्थ- ( यद्दच्छोपलब्धेः) अपनी इच्छानुसार जैसा तैसा जाननेके कारण ( सदसतोः) सत् और असत् पदार्थो में ( अविशेषात् ) विशेष ज्ञान न होनेसे ( उन्मत्तवत् ) पागल पुरूषके ज्ञानकी तरह मिथ्याद्दष्टिका ज्ञान मिथ्याज्ञान ही होता है। भावार्थ- जैसे पागल पुरूष जब स्त्रीको स्त्री और माताको माता समझ रहा है तब भी उसका ज्ञान मिथ्याज्ञान कहलाता है, क्योंकि उसके माता और स्त्रीके बीचमें कोई स्थिर अन्तर नहीं है, वैसे ही मिथ्याद्दष्टि जब पदार्थोको ठीक जान रहा है तब भी सत् असत्का निर्णय नहीं होनेसे उनका ज्ञान मिथ्या ज्ञान ही कहलाता है ॥३२॥ नयोंके भेदनैगमसंग्रहव्यवहारर्जु सूत्रशब्दसमभिरूढैवं भूतानयाः॥३३॥ अर्थ- नैगम, संग्रह व्यवहार, ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ़ और एवंभूत ये सात नय हैं।' नैगम नय- जो नय अनिष्पन्न अर्थके संकल्प मात्रको ग्रहण करता है वह नैगम नयहै।जैसे लकड़ी पानीआदिसामग्री इकट्ठीकरनेवाले पुरूषसे कोई पूछता है कि आप क्या कर रहे हैं, तब वह उत्तर देता है कि रोटी बना रहा हूँ । यद्यपि उस समय वह रोटी नहीं बना रहा है तथापि नैगम नय उसके इस उत्तरको सत्यार्थ मानता है। 1. वस्तुके अनेक धर्मोमेंसे किसी एकको मुख्यता कर अन्य धर्मोका विरोध न करते हुए पदार्थका जानना नय है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001795
Book TitleMokshshastra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorPannalal Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, P000, P005, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size12 MB
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