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________________ शंका समाधान आठवां अध्याय [४०] शंका- बन्धतत्त्वको चार भागों में ही क्यों बांटा गया ? [४०] समाधान- जब कोइ एक पदार्थ दूसरे पदार्थको आवृत्त करता है या उसकी शक्तिका घात करता है तब आचरण करनेवाले पदार्थ में आचरण करनेका स्वभाव, आचरण करनेका काल, आचरण करनेकी शक्तिका हीनाधिक भाव और आचरण करनेवाले पदार्थका परिणाम ये चार अवस्थाएं एकसाथ प्रकट होती है। यही बात प्रकृतिमें समझना चाहिये । प्रकृतिमें आत्मा आव्रियमाण और कर्म आचरण । अतः कर्मकी भी बन्धके समय उक्त चार अवस्थाएं प्रकट होती है जिन्हें प्रकृतिबन्ध, स्थितिबन्ध, अनुभागबन्ध और प्रदेशबन्ध कहते हैं। ये चारों अवस्थाएं कर्मबन्धके प्रथम समयमें ही सुनिश्चित हो जाती हैं। [२२५ उदाहरणार्थ जिस समय हम लालटेनको वस्त्रसे ढ़कते हैं उसी समय वस्त्रमें चार अवस्थाएं स्पष्टतः प्रतिभाषित होती है। १ - वस्त्रका स्वभाव लालटेनके प्रकाशको आवृत्त करना, २ - निश्चित कालतक लालटेनके प्रकाशको आवृत किये रहना, ३- लालटेनके प्रकाशको आवृत करनेकी शक्तिका वस्त्रमें हीनाधिक रूपसे पाया जाना और आवृत करनेवाले वस्त्रका परिणाम । [४१] शंका - विहायोगति नामकर्मका उदय किसके होता है ? [४१] समाधान- जिस कर्मके उदयसे जीव आकाशमें गमन करता है उसे विहायोगति नामकर्म कहते हैं। आकाश सर्वत्र है अतः पृथ्वी आदिपर गमन करना भी आकाशमें गमन करना है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001795
Book TitleMokshshastra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorPannalal Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, P000, P005, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size12 MB
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