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________________ - २२४] मोक्षशास्त्र सटीक भावना और तद्रूप क्रिया इन दोनोंके त्यागसे होता हैं। इस प्रकार अतिचार और अनाचारमें यही अन्तर हैं। [३९] शंका-उपभोग परिभोग परिणाम व्रत और उसके अतिचारोंका विशद अभिप्राय क्या है ? [३९] समाधान-बारह व्रतोंका स्वीकार यावजीवनके लिये किया जाता है। इन बारह व्रतों में उपभोग परिभोग परिणामव्रतका भी अंतर्भाव हैं इसके स्वीकार करनेके पश्चात् यह सदाकाल रहता हैं यह निश्चित होता हैं। यद्यपि उपभोग परिभोगकी वस्तुओंका त्याग दो प्रकारका होता है-कुछका यावज्जीवनके लिये और कुछका नियतकालके लिये, तो भी उपभोगपरिभोग परिमाणव्रत यह आत्माका परिणाम हैं अतः उपभोगपरिभोगकी वस्तुओंके नियतकालिक त्यागमें निमित्त पड़ने पर भी वह व्रतरुप परिणाम सदा बना रहता हैं। देशवकाशिकव्रत आदिमें भी यही क्रम जानना चाहिये। अब रही इसके अतिचारोंकी बात, सो इस विषयमें मतभेद हैं तो भी प्रकृतिमें यह विचार करना है कि तत्त्वार्थसूत्रमें इसके अतिचार किस अभिप्रायसे बतलाये हैं। मेरे ख्यालसे एक तो जिस श्रावकके उपभोगपरिभोग-परिमाण व्रतमें सचित्त आहारका त्याग भी गर्भित हैं उसकी प्रमुखतासे ये अतिचार गिनाये हैं। दूसरे श्रावकके घर अतिथि आते भी हैं। अतः यदि श्रावक आहार बनाते समय ये दोष उत्पन्न करता है तो भी ये अतिचार हो जाते हैं, क्योंकि इन दोषोंके कारण वह आहार अतिथिके योग्य नहीं रहता, और ऐसा करनेसे आहार तैयार करनेवाले श्रावकके परिणाम भी निर्मल नहीं रहते। यही सबब है कि स्त्रचित्ताहार आदिको अतिचारोंमें गिनाया है। चरित्रसारमें भी यही युक्ति दी है कि इनके कारण अतिथिका उपयोग इन स्त्रचित्त आदिके विषयमें जाता हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001795
Book TitleMokshshastra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorPannalal Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, P000, P005, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size12 MB
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