SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 247
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०२] मोक्षशास्त्र सटीक इस प्रकार यद्यपि इस सूत्रमें संज्ञा, मति आदि अन्य विषयोंका उल्लेख है तो भी इनको मनःपर्यायज्ञानी तभी जानता है जब वे किसीके मनके विषय हो गये हो या होनेवाले हों। इससे ज्ञात होता है कि मन:पर्यय ज्ञानके द्वारा मुख्यतः भूत, भविष्य और वर्तमानरूप मनकी पर्याये जानी जाती हैं। तत्वार्थ सूत्रमें मनःपर्ययज्ञानका विषय जो अवधिज्ञानके विषयका अनन्तवां भाग बतलाया है उससे भी उक्त निष्कर्ष निकलता है। [११] शंका-मनके आलंबनसे मनःपर्ययज्ञान होता है इसका क्या अभिप्राय है ? [११] समाधान-मन:पर्ययज्ञान मनोगत अर्थको ही जानता है इतना ही मनका आलम्बन यहांपर विवक्षित है। जैसे “आकाशमें चन्द्रमाको देखो " इस उदाहरणमें आकाश चन्द्रमाका आलम्बन मात्र है। यह कुछ चन्द्रमाको उत्पत्तिमें सहायक नहीं इसी प्रकार मनःपर्ययज्ञान कुछ मनके निमित्तसे उत्पन्न नहीं होता। किन्तु मनोगत विषय ही मनःपर्ययज्ञानका विषय है। मनःपर्ययज्ञानमें इतना ही मनका अवलम्बन विवक्षित है। [१२] शंका-ऋजुमति और विपुलमतिमें क्या अन्तर है ? [१२] समाधान-ऋजुमति मनःपर्ययज्ञान उन्हींके द्वारा विचारे गये पदार्थको जानता है जिनका मन संशय विपर्यय और अनध्यवसायसे रहित है, या ऋजुमति मनःपर्ययज्ञान तीनों कालके विषयको जानता हुआ भी अतीत और अनागत मनके विषयको नहीं जानता किन्तु जो जीव विद्यमान है और वर्तमान कालमे विचार कर रहे हैं उन्हींके मनसे सम्बन्ध रखनेवाले तीनों कालके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001795
Book TitleMokshshastra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorPannalal Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, P000, P005, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy