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________________ १९८]. मोक्षशास्त्र सटीक [८] शंका-अङ्ग और पूर्वोका क्या विषय है ? [८] समाधान- आगममें अङ्गोंके बारह भेद किये हैंआचारांग, सूत्रकृतांग, स्थानांग, समवायांग, व्याख्याप्रज्ञति, ज्ञातृधर्मकथा, उपासकाध्ययन, अन्तःकृद्दश, अनुत्तरोपयादिक दश, प्रश्रव्याकरण, विपाकसूत्र और दृष्टिप्रवाद। आचारांगमें मुनियों के आचारका वर्णन है। सूत्रकृतांगमें ज्ञानविनय, प्रज्ञापना, कल्प्याकल्प्य, छेदोपस्थापना और व्यवहार धर्म क्रियाका व्याख्यान है। स्थानांगमें पदार्थोके एकादिक भेदोंका वर्णन है। क्रम यह है कि एक स्थानका वर्णन करते समय सबके एकसाथ भेद बतलाये हैं। दो स्थानका वर्णन करते समय सबके दो दो भेद बतलाये हैं। इसी प्रकार आगे समझना। समवायांगमें सब पदार्थोके समवायका कथन है। द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावकी अपेक्षा समवाय चार प्रकारका है। धर्म, अधर्म लोकाकाश और एक जीवके प्रदेश समान हैं यह द्रव्य समवाय है, सोमान्तक नरक, मानुषलोक, ऋजुविमान और सिद्धक्षेत्र समान है, यह क्षेत्र समवाय है। एक समय दूसरे समयके बराबर है। एक मुहूर्त दूसरे मुहूर्तके बराबर है यह काल समवाय है। केवलज्ञान केवलदर्शनके समान है यह भाव समवाय है। इसी प्रकार सर्वत्र जानना। व्याख्याप्रज्ञतिमें क्या जीव है इत्यादि प्रश्नोंका समाधान किया है। ज्ञातृधर्मकथामें तीर्थंकरके धर्मोपदेश, अनेक प्रकारकी कथाओं और उपकथाओंका व्याख्यान किया है। उपासकाध्ययनमें ग्यारह प्रकारके श्रावकोंकी चर्याका वर्णन है। अन्तःकृतदशमें एक एक तीर्थंकरके समय दारुण उपसर्गोको सहकर निर्वाणको प्राप्त हुए दस दस मुनियोंका वर्णन है। अनुत्तरोपपादिक दशमें एक एक तीर्थङ्करके Hamara समयमें दारुण उपसर्गोको सह HTT अनुत्तर विमानको प्राप्त हुए दस ९ दस मुनियोंका वर्णन है। प्रश्रव्याकरणमें आक्षेपिणी, विक्षेपिणी, ५० संवेगनी और निवेदनी इन चार प्रकारको कथाओंका वर्णन है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001795
Book TitleMokshshastra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorPannalal Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, P000, P005, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size12 MB
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