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________________ मोक्षशास्त्र सटीक परिशिष्ट शंका-समाधान ( ले:- पं. फूलचन्द्रजी जैन सिद्धांतशास्त्री, सम्पादक, जयधवला ) पाठशालाओं में तत्त्वार्थसूत्र पढ़ाया जाता है। इसमें उपयोगी सब विषयोंका संकलन है। हमारे मित्र पंडित पन्नालालजी जैन साहित्याचार्यका आग्रह रहा कि इसके परिशिष्ट में कुछ ऐसे प्रश्नोत्तरोंका संकलन कर दिया जाये जिससे अध्यापक व स्वाध्यायप्रेमी सबको लाभ हो । यह सोचकर हम दोनोंने कुछ प्रश्न तैयार किये थे उन्हींके अनुसार यह परिशिष्ट तैयार किया है। इसमें प्रत्येक अध्यायके क्रमसे प्रश्न व उनके उत्तर संकलित किए गये है। १८६] पहला अध्याय [१] शंका- किस योग्यताके होनेपर जीवोंको सम्यग्दर्शन प्राप्त हो सकता है ? [१] समाधान - सम्यग्दर्शन तीन है- औपशमिक, क्षायिक और क्षायोपशमिक | इनमेंसे पहले औपशमिक सम्यग्दर्शनकी अपेक्षा विचार करते हैं। ऐसा नियम है कि संसारमें रहनेका काल अर्ध पुद्गल परिवर्तन शेष रह जानेपर औपशमिक सम्यग्दर्शन हो सकता है । यह एक काललब्धि है। इस काललब्धिके प्राप्त हो जानेपर भी उसी जीवके औपशमिक सम्यग्दर्शन उत्पन्न होता है जो संझी, पर्याप्त साकार उपयोगसे युक्त और निर्मल परिणामवाला होता है, अन्यके नहीं । लेश्याओंके विषयमें यह नियम है कि मनुष्य और तिर्यंचोंके वर्तमान शुभ लेश्याऐं होनी चाहिए। किन्तु देव और नारकियोंके जहां जो लेश्या बतलाई है उसीके रहते हुए औपशमिक सम्यग्दर्शनकी प्राप्ति हो जाती है। इसी प्रकार गोत्रके विषयमें भी जानना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001795
Book TitleMokshshastra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorPannalal Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, P000, P005, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size12 MB
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