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________________ मोक्षशास्त्र सटीक व्यञ्जनसंक्रान्ति - श्रुतके एक वचनको छोड़कर अन्यका अवलम्बन करना और उसे छोड़कर किसी अन्यका अवलम्बन करना सो व्यञ्जनसंक्रान्ति है। १७६ ] योगसंक्रान्ति- काययोगको छोड़कर मनोयोग या वचनयोगको ग्रहण करना और उन्हें छोड़कर किसी अन्य योगको ग्रहण करना सो योगसंक्रान्ति है ॥ ४४॥ पात्रकी अपेक्षा निर्जरामें न्यूनाधिकताका वर्णनसम्यग्द्दष्टिश्रावकविरतानन्तवियोजकदर्शनमोहक्षपकोपशमकोपशान्तमोहक्षपकक्षीणमोहजिना: क्रमशोऽसंख्येयगुणनिर्जराः ॥ ४५ ॥ अर्थ- १ सम्यग्द्दष्टि, २ पञ्चमगुणस्थानवर्ती श्रावक, ३ विरति ( मुनि), ४ अनन्तानुबन्धीकी विसंयोजना करनेवाला', ५ दर्शनमोहका क्षय करने वाला, ६ चारित्रमोहका उपशम करनेवाला, ७ उपशांतमोहवाला, ८ क्षपक श्रेणि चढ़ता हुआ, ९ क्षीणमोह (बारहवें गुणस्थानवाला) और १० जिनेन्द्र भगवान्, इन सबके परिणामोंकी विशुद्धताकी अधिकतासे आयुकर्मको छोड़कर प्रतिसमय क्रमसे असंख्यातगुणी निर्जरा होती है ॥ ४५ ॥ निर्ग्रन्थ-साधुओंके भेद पुलाकवकुशकुशीलनिर्ग्रन्थस्नातकानिर्ग्रन्थाः । ४६ । अर्थ- पुलाक, वकुश, कुशील, निर्ग्रन्थ और स्नातक ये पांच प्रकारके निर्ग्रन्थ साधु है। 1. अनन्तानुबन्धीके परिमाणुओंका अप्रत्याख्यानावरणादि रूप बदलनेवाला । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001795
Book TitleMokshshastra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorPannalal Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, P000, P005, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size12 MB
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