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________________ ब्राही तप Jain Education International प्रायश्चित्त विनय ४ For Private & Personal Use Only १ अनशन १ आलोचना २ अवमोदर्य २ प्रतिक्रमण ३ वृत्तिपरिसंख्यान ३ तदुभय ४ रस परित्याग ४ विवेक ५ विविक्त ५ व्युत्सर्ग शय्यासन ६ तप ६ कायक्लेश ७ छेद ८ परिहार ९ उपस्थापन तपके भेद अन्तरङ्ग तप वैयावृत्य स्वाध्याय व्युत्सर्ग ध्यान १०। २॥ १ज्ञानविनय १ आचार्य वैयावृत्य १ याचना १ बाह्योपधि त्याग २ दर्शनविनय २ उपाध्याय वैयावृत्य २ पृच्छना २ आभ्योन्तरो३ चारित्र विनय ३ तपस्वी वैयावृत्य ३ अनुप्रेक्षा पधित्याग ४ उपचार विनय ४ शैक्ष्य वैयावृत्य ४ आम्नाय ५ ग्लान वैयावृत्य ५ धर्मोपदेश ६ गण वैयावृत्य ७ कुल वैयावृत्य ८ संघ वैयावृत्य ९ साधु वैयावृत्य १० मनोज्ञ वैयावृत्य आर्तध्यान रौद्रध्यान धर्मध्यान. शुक्लध्यान १ अनिष्टसंयोगज १ हिंसानन्दी १ आज्ञाविचय १ पृथकत्ववितर्क २ इष्टवियोगज २ मृषानन्दी २ अपायविचय २ एकत्ववितर्क ३ वेदनाजन्य ३ चौर्यानन्दी ३ विपाकविचय ३ सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाति ४ निदान ४ परिग्रहानन्दी ४ संस्थानविचय ४ व्युपरतक्रियानिवर्ति नवम अध्याय www.jainelibrary.org [१७५
SR No.001795
Book TitleMokshshastra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorPannalal Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, P000, P005, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size12 MB
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