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________________ १७२] मोक्षशास्त्र सटीक अर्थ- हिंसा, झूठ, चोरी और विषय संरक्षणसे उत्पन्न हुआ ध्यान रौद्रध्यान कहलाता है और वह अविरत तथा देशविरत (आदिके पाँच) गुणस्थानों में होता है। भावार्थ- निमित्तके भेदसे रौद्रध्यान चार प्रकारका होता हैं। १हिंसानन्दी ( हिंसामें आनन्द मानकर उसीके साधन जुटाने में तल्लीन रहना), २- मृषानंदी ( असत्य बोलने में आनन्द मानकर उसीका चिन्तवन करना), ३-चौर्यानन्दी ( चोरीमें आनन्द मानकर उसीका चिन्तवन करना), और ४परिग्रहानन्दी ( परिग्रहकी रक्षाकी चिन्ता करना)॥३५॥ धर्मध्यान ' का स्वरुप व भेदआज्ञापायविपाकसंस्थानविचयाय धर्म्यम्।३६। ___ अर्थ- आज्ञाविचय, अपायविचय, विपाकविचय और संस्थानविचयके लिए चिन्तवन करना सो धर्मध्यान हैं। भावार्थ- धर्मध्यानके चार भेद हैं-१ आज्ञाविचय (आगमकी प्रमाणतासे अर्थका विचार करना), २ अपायविचय (संसारी जीवोंके दुःखका तथा उससे छुटनेके उपायका चिन्तवन करना), ३ विपाकविचय (कर्मके फलका-उदयका विचार करना)और ४ संस्थानविचय( लोकके आकारका विचार करना।) स्वामी- यह धर्मध्यान चौथे गुणस्थानसे लेकर सप्तम गुणस्थान तक श्रेणी चढ़नेके पहले पहले तक होता हैं ॥ ३६॥ शुक्लाध्यान ' के स्वामीशुक्ले चाद्ये पूर्वविदः ॥३७॥ 1. धर्मविशिष्टध्यानको धर्मध्यान कहते हैं। 2. शुद्धध्यानको शुक्लध्यान कहते हैं । 3. यह कथन उत्कृष्टताकी अपेक्षा है । साधारण रूपसे यह ध्यान अष्ट प्रवचन मातृका तक ज्ञानवालोंके भी हो सकता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001795
Book TitleMokshshastra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorPannalal Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, P000, P005, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size12 MB
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