________________
१५८]
मोक्षशास्त्र सटीक सम्यग् भाषा (हित मित प्रिय वचन बोलना ), सम्यग् एषणा (दिनमें एकबार शुद्धनिर्दोष आहार लेना), सम्यग्आदान निक्षेपण ( देखभालकर किसी वस्तुको उठाना रखना) और सम्यग् उपसर्ग ( जीव रहित स्थानमें मलमूत्र क्षेपण करना ) ये पांच समितिके भेद हैं ॥ ५ ॥
दश धर्मउत्तमक्षमामार्दवार्जवशौचसत्यसंयमतपस्त्यागाकिंचन्यब्रह्मचर्याणि धर्मः ॥६॥
___ अर्थ- उत्तम क्षमा ( क्रोधके कारण उपस्थित रहते हुए भी क्रोध नहीं करना), उत्तम मार्दव ( उत्तम कुल, विद्या, बल आदिका घमंड नहीं करना), उत्तम आर्जव(मायाचारका त्याग करना), उत्तम शौच (लोभका त्याग कर आत्माको पवित्र बनाना), उत्तम सत्य (रागद्वेष पूर्वक असत्य वचनोंको छोड़कर हित मित प्रिय वचन बोलना, ) उत्तम संयम( ५ इन्द्रिय
और मनको वशमें करना तथा छह कायके जीवोंकी रक्षा करना), उत्तम तप (बाह्याभ्यन्तर १२ प्रकारके तपोंका करना), उत्तम त्याग ( कीर्ति तथा प्रत्युपकारकी वांच्छासे रहित होकर चार प्रकारका दान देना), उत्तम आकिञ्चन्य( पर पदार्थो में ममत्वरूप परिणामोंका त्याग करना)और उत्तम ब्रह्मचर्य (स्त्री मात्रका त्यागकर आत्माके शुद्ध स्वरूपमें लीन रहना) ये दश धर्म हैं।
बारह अनुप्रेक्षाएँअनित्याशरणसंसारकत्वान्यत्वाशुच्यास्त्रवसंवरनिर्जरा लोकबोधिदुर्लभधर्मस्वाख्यातत्वानुचिन्तनमनुप्रेक्षाः
अर्थ- अनित्य, अशरण, संसार, एकत्व, अन्यत्व, अशुचित्व, आस्त्रव, संवर, निर्जरा, लोक, बोधिदुर्लभ और धर्म इन बारहके स्वरुपको बार बार चिन्तवन करना सो अनुप्रेक्षा है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
___www.jainelibrary.org