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मोक्षशास्त्र सटीक करनेके लिये उसे शांत भावोसे सह लेना उसे परिषहजय कहते हैं।
चारित्र-कर्मोके आस्रवमें कारणभूत बाह्य आभ्यन्तर क्रियाओंके रोकनेको चारित्र कहते हैं ॥२॥
निर्जरा और संवरका कारण
तपसा निर्जरा च ॥३॥ अर्थ- तपसे निर्जरा और संवर दोनों होते हैं।
नोट-१- तपका दश प्रकारसे धर्मो में अन्तर्भाव हो जानेपर भी जो अलगसे ग्रहण किया है उसका प्रयोजन यह है कि यह संवर और निर्जरा दोनोंका कारण है तथा संवरका प्रधान कारण है।
नोट-२- यद्यपि पुण्यकर्मकाबन्धहोना भी तपका फल हैं तथापि तपका प्रधान फल कर्मोकी निर्जरा ही है। जब तपमें कुछ न्यूनता होती है तब उससे पुण्यकर्मका बन्ध हो जाता है। इसलिये पुण्यका बन्ध होना तपका गौणफल है। जैसे खेती करनेका प्रधान फल तो धान्य उत्पन्न होना है। और गौण फल पलाल ( प्याल ) वगैरहका उत्पन्न होना है ॥३॥
गुप्तिका लक्षण व भेदसम्यग्योगनिग्रहो गुप्तिः ॥४॥
अर्थ- भले प्रकारसे अर्थात् विषयाभिलाषाको छोड़कर, काय, वचन और मनकी स्वच्छन्द प्रकृतिके रोकनेको गुप्ति कहते है। उसके तीन भेद है-१ कायगुप्ति ( कायको रोकना) २ वचनगुप्ति ( वचनको रोकना ) और ३ मनगुप्ति (मनको वशमें करना) ॥४॥
समितिके भेदईर्याभाषैषणादाननिक्षेपोत्सर्गाः समितयः॥५॥
अर्थ- सम्यग् ईर्या ' ( चार हाथ आगे जमीन देखकर चलना), 1. इस सूत्रमें ऊपरके सूत्रसे यसम्क् पदकी अनुवृत्ति आती है।
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