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सप्तम अध्याय
[ १२३ __ सत्याणुव्रतके अतिचारमिथ्योपदेशरहोभ्याख्यानकूटलेखक्रियान्यासा
पहारसाकारमन्त्रभेदाः ॥२६॥
अर्थ- मिथ्योपदेश [ झूठा उपदेश देना] , रहोभ्याख्यान [स्त्री पुरूषकी एकान्तकी बातको प्रकट करना], कूटलेखक्रिया [ झूठे दस्तावेज आदि लिखना], न्यासापहार [ किसीकी धरोहरका अपहरण करना] और साकारमन्त्रभेद [ हाथ चलाने आदिके द्वारा दूसरेके अभिप्रायको जानकर उसे प्रकाशित कर देना ] ये पांच सत्याणुव्रतके अतिचार हैं ॥२६॥
अचौर्याणुव्रतके पांच अतिचारस्तेनप्रयोगतदाहृतादानविरूद्धराज्यातिक्रमहीनाधिकमानोन्मानप्रतिरूपकव्यवहाराः ॥२७॥
अर्थ-स्तेनप्रयोग-[ चोरको, चोरोके लिए प्रेरणा करना व उसके उपाय बताना ], तदाहृतादान [ चोरके द्वारा चुराई हुई वस्तुको खरीदना ], विरूद्धराज्यातिक्रम [ राजाकी आज्ञाके विरूद्ध चलना, टाउनड्युटी, टैक्स वगैरह नहीं देना], ' हीनाधिकमानोन्मान [ देने लेनेके बाँट तराजू वगैरहको कमती बढ़ती रखना] और प्रतिरूपक व्यवहार [ बहुमूल्य वस्तुमें, अल्य मूल्यकी वस्तु मिलाकर असली भावसे बेचना], ये पांच अचौर्याणुव्रतके अतिचार हैं ॥२७॥
ब्रह्मचर्याणुव्रतके पांच अतिचारपरविवाहकरणेत्वरिकापरिगृहीतापरिगृहीतागमनानङ्गक्रीडाकामतीव्राभिनिवेशाः ॥२८॥ 1. अथवा राज्यमें विप्लव होनेपर अधिक मूल्यकी वस्तुको अल्प मूल्यमें खरीदना और अल्प भूल्यकी वस्तुको अधिक मूल्यमें बेचना।
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