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________________ १२२] मोक्षशास्त्र सटीक सम्यग्दर्शनके ' पांच अतिचार शङ्कांकाक्षाविचिकित्सान्यदृष्टिप्रशंसासंस्तवाः सम्यग्दृष्टेरतिचाराः ॥२३॥ अर्थ- १-शङ्का (जिनेन्द्र भगवानके द्वारा कहे हुए सूक्ष्म पदार्थो में सन्देह करना अथवा सप्तमय' करना) कांक्ष (सांसारिक सुखोंकी इच्छा करना), विचिकित्सा दुःखी दरिद्री जीवोंको अथवा रत्नत्रयसे पवित्रपर बाह्यमें मलिनमुनियों के शरीरको देखकर ग्लानि करना), अन्यदृष्टिप्रशंसा (मनसे मिथ्यादृष्टियोंके ज्ञान आदिको अच्छा समझना) और अन्यदृष्टिसंस्तव( वचनसे मिथ्यादृष्टियोंकी प्रशंसा करना) ये पांच सम्यग्दर्शन के अतिचार हैं ॥ २३॥ ५ व्रत और ७ शीलोंके अतिचारोंकी संख्याव्रतशीलेषु पञ्च पञ्च यथाक्रमम् ॥२४॥ अर्थ- पांच व्रत और सात शीलोमें भी क्रमसे पांच पांच अतिचार होते है, जिनका वर्णन आगे के सूत्रोमें है। ॥२४॥ अहिंसाणुव्रतके पांच अतिचारबन्धवधच्छेदातिभारारोपणानपाननिरोधाः ॥२५॥ अर्थ-बन्ध( इच्छित स्थानमें जानेसे रोकनेके लिये रस्सी आदिसे बांधना), वध (कोड़ा वेत आदिसे मारना), छेद ( नाक, कान आदि अकोंका छेदना), अतिभारारोपण (शक्तिसे अधिक भार लादना) और अन्नपाननिरोध ( समयपर खाना पीना नहीं देना) ये पांच अहिंसाणुव्रतके अतिचार हैं ॥ २५॥ 1.जिसका निर्दोष सम्यग्दर्शन हो वही व्रत पाल सकता है, इसलिये पहिले सम्यग्दर्शनके पाँच अतिचार कहते हैं। 2. व्रतके एक देश भङ्ग होनेको अतिचार कहते है। 3. इसलोकभय. परलोकभय, मरणभय, वेदना, अगुप्तिभय और आकस्मिकभय ये सात भय है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001795
Book TitleMokshshastra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorPannalal Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, P000, P005, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size12 MB
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