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माक्षशास्त्र सटीक ३- अनर्थ दण्दव्रत-प्रयोजन रहीत पापवर्धक क्रियाओंका त्याग करना सो अनर्थ दण्डव्रत है। इसके पांच भेद हैं -१-पापोपदेश( हिंसा आरम्भ आदि पापके कर्मोका उपदेश देना) २-हिंसादान ( तलवार आदि हिंसाके उपकरण देना), ३-अपध्यान (दूसरेका बूरा विचारना), ४-दुःश्रुति ( रागद्वेषको चढ़ानेवाले खोटे शास्त्रोंका सुनाना) और ५प्रमादचर्या (बिना आयोजन यहां वहां घूमना तथा पृथ्वी आदिको खोदना।)
चार शिक्षाव्रत १- सामायिक-मन, वचन, काय और कृत, कारित, अनुमोदनासे पांचों पापोंका त्याग करना सो सामायिक है।
२- प्रोषधोपवास-पहले और आगेके दिनोंमें एकाशनके साथ अष्टमी और चतुर्दशीके दिन उपवास आदि करना प्रोषधोपवास है।
३- उपभोगपरिभोगपरिमाणव्रत-भोग । और उपभोगकी: वस्तुओंका परिमाण कर उससे अधिकमें ममत्व नहीं करना सो भोगउपभोगपरिमाणवत है।
४- अतिथि संविभागवत-अतिथि अर्थात् मुनियोंके लिए आहार कमन्डलु पीछी वसतिका आदिका दान देना सो अतिथि संभाविभागवत है।
व्रतीको सल्लेखना धारण करनेका उपदेशमारणांतिकी सल्लेखनां जोषिता ॥२२॥
अर्थ- गृहस्थ, मरणके समय होनेवाली सल्लेखनाको प्रीतिपूर्वक सेवन करता है।
. सल्लेखना- इसलोक अथवा परलोक सम्बन्धी किसी प्रयोजनकी अपेक्षा न करके शरीर और कषायके क्रश करनेको सल्लेखना कहते हैं ॥ २२॥ 1. जो एकबार भोगनेमें आवे, 2. जो बारबार भोगनेमें आवे।
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