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________________ १२०] माक्षशास्त्र सटीक ३- अनर्थ दण्दव्रत-प्रयोजन रहीत पापवर्धक क्रियाओंका त्याग करना सो अनर्थ दण्डव्रत है। इसके पांच भेद हैं -१-पापोपदेश( हिंसा आरम्भ आदि पापके कर्मोका उपदेश देना) २-हिंसादान ( तलवार आदि हिंसाके उपकरण देना), ३-अपध्यान (दूसरेका बूरा विचारना), ४-दुःश्रुति ( रागद्वेषको चढ़ानेवाले खोटे शास्त्रोंका सुनाना) और ५प्रमादचर्या (बिना आयोजन यहां वहां घूमना तथा पृथ्वी आदिको खोदना।) चार शिक्षाव्रत १- सामायिक-मन, वचन, काय और कृत, कारित, अनुमोदनासे पांचों पापोंका त्याग करना सो सामायिक है। २- प्रोषधोपवास-पहले और आगेके दिनोंमें एकाशनके साथ अष्टमी और चतुर्दशीके दिन उपवास आदि करना प्रोषधोपवास है। ३- उपभोगपरिभोगपरिमाणव्रत-भोग । और उपभोगकी: वस्तुओंका परिमाण कर उससे अधिकमें ममत्व नहीं करना सो भोगउपभोगपरिमाणवत है। ४- अतिथि संविभागवत-अतिथि अर्थात् मुनियोंके लिए आहार कमन्डलु पीछी वसतिका आदिका दान देना सो अतिथि संभाविभागवत है। व्रतीको सल्लेखना धारण करनेका उपदेशमारणांतिकी सल्लेखनां जोषिता ॥२२॥ अर्थ- गृहस्थ, मरणके समय होनेवाली सल्लेखनाको प्रीतिपूर्वक सेवन करता है। . सल्लेखना- इसलोक अथवा परलोक सम्बन्धी किसी प्रयोजनकी अपेक्षा न करके शरीर और कषायके क्रश करनेको सल्लेखना कहते हैं ॥ २२॥ 1. जो एकबार भोगनेमें आवे, 2. जो बारबार भोगनेमें आवे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001795
Book TitleMokshshastra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorPannalal Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, P000, P005, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size12 MB
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