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________________ मोक्षशास्त्र सटीक ब्रह्मचर्य व्रतकी भावनाएँ स्त्रीरागकथाश्रवणतन्मनोहराङ्गनिरीक्षणपूर्वरतानुस्मरणवृष्येष्टरसस्वशरीरसंस्कारत्यागाः पञ्च ॥७। अर्थ- स्त्रीरागकथाश्रवणत्याग-स्त्रियोंमें राग बढ़ानेवाली कथाओं के सुननेका त्याग करना, तन्मनोहराङ्गनिरीक्षणत्याग-स्त्रियों के मनोहर अङ्गोंके देखनेका त्याग करना, पूर्वरतानुस्मरणत्याग-अव्रत अवस्थामें भोगे हुए विषयोंके स्मरणका त्याग करना वृष्येष्टरस त्याग- कामवर्धक गरिष्ठ रसोंका त्याग करना और स्वशरीरसंस्कारत्याग- अपने शरीरके संस्कारोंका त्याग करना, ये पांच ब्रह्मचर्य व्रतकी भावनायें हैं ॥ ७ ॥ ११४] परिग्रहत्याग व्रतकी भावनाएँमनोज्ञामनोज्ञेन्द्रियविषयरागद्वेषवर्जनानिपञ्च । ८ । अर्थ- स्पर्श आदि पांचों इन्द्रियोंके इष्ट अनिष्ट आदि विषयों में क्रमसे रागद्वेषका त्याग करना, ये पांच परिग्रह त्याग व्रतकी भावनायें हैं ॥ ८ ॥ हिंसादि पांच पापोंके विषयमें करनेयोग्य विचारहिंसादिष्विहामुत्रापायावद्यदर्शनम् ॥ ९ ॥ अर्थ - (हिंसादिषु) हिंसादि पांच पापों के होने पर ( इह ) इस लोक में तथा (अमुत्र) परलोकमें (अपायावद्यदर्शनम् ) सांसारिक और पारमार्थिक प्रयोजनोंका नाश तथा निन्दाको देखना पड़ता है ऐसा विचार करे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001795
Book TitleMokshshastra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorPannalal Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, P000, P005, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size12 MB
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