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________________ मासशास्त्र सटाक - दर्शनमोहनीयका आस्त्रवकेवलिश्रुतसंघधर्मदेवावर्णवा दोदर्शनमोहस्य ॥१३॥ अर्थ- केवली, श्रुत-(शास्त्र), संघ ( मुनि आर्यिका श्रावक श्राविका) धर्म और देव इनका अवर्णवाद करना दर्शनमोहनीय कर्मका आस्त्रव है। अवर्णवाद- गुणवानोको झूठे दोष लगाना सो अवर्णवाद है। केवलीका अवर्णवाद- केवली ग्रासाहार करके जीवित रहते है, इत्यादि कहना सो केवलीका अवर्णवाद है। श्रुतका अवर्णवाद- शास्त्रमें मांस भक्षण करना आदि लिखा है, ऐसा कहना सो श्रुतका अवर्णवाद है। संघका अवर्णवाद- ये शुद्र है, मलिन हैं, नग्न हैं इत्यादि कहना सो संघका अवर्णवाद है। ___ धर्मका अवर्णवाद- जिनेन्द्रभगवानके द्वारा कहे हुए धर्ममें कुछ भी गुण नहीं है-उसके सेवन करनेवाले असुर होवेंगे इत्यादि कहना धर्मका अवर्णवाद है। देवका अवर्णवाद- देव मदिरा पीते हैं , मांस खाते हैं, जीवोंकी बलीसे प्रसन्न होते हैं, आदि कहना देवका अवर्णवाद हैं॥१३॥ चारित्र मोहनीयका आस्त्रवकषायोदयार्तीव्रपरिणामश्चारित्रमोहस्य ॥१४॥ अर्थ- कषायके उदयसे होनेवाले तीव्र परिणाम चारित्रमोहनीयके आस्त्रव हैं॥१४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001795
Book TitleMokshshastra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorPannalal Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, P000, P005, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size12 MB
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