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मशास्त्र सटाक
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( २४) प्रशंसा आदिम किसीको मिथ्यात्व रुप परिणतिमें दृढ़ करना
मिथ्यादर्शन क्रिया है। ( २५ ) चारित्र मोहनीयके उदयसे त्यागरूप प्रवृत्ति नहीं होना अप्रत्याख्यान क्रिया है।
आस्त्रवकी विशेषतामें कारणतीव्रमन्दज्ञाताज्ञात भावाधिकरणवीर्य
विशेषेभ्यस्तद्विशेषः॥६॥
अर्थ- तीव्र भाव, मन्दभाव, ज्ञातभाव, अज्ञातभाव. अधिकरणविशेष और वीर्यविशेषसे आस्रवमें विशेषता-हीनाधिकता होती है।
तीव्रभान-- अन्यन्त बढ़े हुए, क्रोधादिके द्वारा जो तीव्ररुप भाव होते हैं उनको तीव्रभाव कहते हैं। .
मन्दभाव- कषायोंको मन्दतासे जो भाव होते हैं उन्हें मन्दभाव कहते हैं।
ज्ञातभाव- यह प्राणी मारनेके योग्य है इस तरह जानकर प्रवृत होनंको ज्ञातभाव कहते हैं।
अज्ञातभाव- प्रमाद अथवा अज्ञानसे प्रवृत्नि करनेको अज्ञातभाव कहते हैं।
अधिकरण - जिसके आश्रय अर्थ रहे उसे अधिकरण कहते हैं। वार्य द्रव्यकी स्वशक्तिविशेषको वीर्य कहते है।
अधिकरणके भेदअधिकरणं जीवाऽजीवाः॥७॥
अर्थ . आंधकरणाके दो भेद हैं १ जीव और २ - अर्जीव । अर्थात् आम्मच नीच और अजीब दोनों के आश्रय है।। १ ।।
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