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मोक्षशास्त्र सटीक
अर्थ- सौधर्म ऐशान स्वर्गके देवोंकी आयु दो सागरसे कुछ
अधिक है।'
नोट- यहां 'सागरोपमे' इस द्विवचनान्त प्रयोगसे ही दो सागर अर्थ किया जाता है ॥ २९ ॥
सानत्कुमारमाहेन्द्रयोः सप्त ॥ ३० ॥
अर्थ- सानत्कुमार और माहेन्द्र स्वर्गमें देवोकी आयु सात सागरसे कुछ अधिक है।
नोट- इस सूत्र में अधिक शब्दोंकी अनुवृति पूर्व सूत्रसे हुई है ॥
३० ॥
त्रिसप्तनवैकादशत्रयोदशपञ्च दशभिरधिकानि तु ॥ ३१ ॥
अर्थ- आगेके युगलोंमें ७ सागरसे क्रमपूर्वक ३-७-९-११-१३ और १५ सागर अधिक आयु है । अर्थात् ब्रह्म और ब्रह्मोत्तर स्वर्गमें १० सागरसें कुछ अधिक, लान्तव और कापिष्ट स्वर्गमें १४ सागरसे कुछ अधिक, शुक्र और महाशुक्र स्वर्गमें १६ सागरसे कुछ अधिक, सतार और सहस्त्रार स्वर्गमें १८ सागरसे कुछ अधिक' आनत और प्राणत स्वर्गमें २० सागर तथा आरण और अच्युत स्वर्गमें २२ सागर उत्कृष्ट स्थिति हैं ॥ ३१ ॥
आरणाच्युतादूर्ध्वमेकैकेन नवसु ग्रेवेयकेषु विजयादिषु सर्वार्थसिद्धौ च ॥ ३२ ॥
1. यह अधिकता धातायुष्क जीवोंकी अपेक्षा है। जिन्होंने पहले ऊपरकी स्वर्गोकी आयु बांधी थी, बादमें संक्लेश परिणामोंके कारण आयुमें ह्रास होकर नीचेके स्वर्गमें उत्पन्न होते है वे घातायुष्क कहलाते हैं. ऐसे देवोंकी आयु अन्यं देवोंकी अपेक्षा आधा सागर अधिक होती है। 2. सूत्रमें 'तु' शब्द होनेके कारण अधिक शब्दका सम्बन्ध बारहवें स्वर्ग तक ही होता है. क्योंकि घातायुष्क जीवोंकी उत्पत्ति यहीं तक होती है ।
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