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चतुर्थ अध्याय अनुदिश तथा अनुत्तरवासी देवोंमें अवतारका नियम
विजयादिषु द्विचरमाः ॥ २६ ॥
अर्थ-विजय वैजयंत जयंत अपराजित तथा अनुदिश विमानोंके अहमिन्द्र द्विचरम होते है, अर्थात मनुष्योंके दो जन्म लेकर नियमसे मोक्ष चले जाते है। किन्तु सर्वार्थसिद्धिके अहमिन्द्र एक भवावतारी ही होते हैं
॥ २६ ॥
तिर्यञ्च कौन है ?
औपपादिकमनुष्येभ्यः शेषास्तिर्यग्योनयः । २७ ।
अर्थ - उपपाद जन्मवाले देव नारकी तथा मनुष्योंसे अतिरिक्त जीव [ तिर्यग्योनयः ] तिर्यञ्च है । तिर्याञ्च समस्त संसारमें व्याप्त हैं । परन्तु सनालीमें ही रहते हैं।
भवनवासी देवोंकी उत्कृष्ट आयुका वर्णनस्थितिरसुरनागसुपर्णद्वीपशेषाणां सागरोपमत्रिपल्योपमार्द्धहीनमिताः ॥ २८ ॥
अर्थ- भवनवासीयोंमें असुरकुमार, नागकुमार, सुपर्णकुमार, द्वीपकुमार और शेषके ६ कुमारोंकी आयु क्रमसे १ सागर, ३ पल्य, 2 1⁄2 पल्य २ पल्य और 1 1⁄2 पल्य है ॥२८ ॥
वैमानिक देवोंकी उत्कृष्ट आयु - 1 सौधर्मेशानयोः सागरोपमे अधिके ॥ २९॥
1. यद्यपि भवनवासियोंके बाद व्यन्तर और ज्योतिष्क देवोंकी आयु बतलानेका क्रम हैं तथापि लाघवके ख्यालसे यहाँ क्रमभंग कर वैमानिक देवोंकी आयु बतला रहे है ।
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