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________________ [ ७३ चतुर्थ अध्याय अनुदिश तथा अनुत्तरवासी देवोंमें अवतारका नियम विजयादिषु द्विचरमाः ॥ २६ ॥ अर्थ-विजय वैजयंत जयंत अपराजित तथा अनुदिश विमानोंके अहमिन्द्र द्विचरम होते है, अर्थात मनुष्योंके दो जन्म लेकर नियमसे मोक्ष चले जाते है। किन्तु सर्वार्थसिद्धिके अहमिन्द्र एक भवावतारी ही होते हैं ॥ २६ ॥ तिर्यञ्च कौन है ? औपपादिकमनुष्येभ्यः शेषास्तिर्यग्योनयः । २७ । अर्थ - उपपाद जन्मवाले देव नारकी तथा मनुष्योंसे अतिरिक्त जीव [ तिर्यग्योनयः ] तिर्यञ्च है । तिर्याञ्च समस्त संसारमें व्याप्त हैं । परन्तु सनालीमें ही रहते हैं। भवनवासी देवोंकी उत्कृष्ट आयुका वर्णनस्थितिरसुरनागसुपर्णद्वीपशेषाणां सागरोपमत्रिपल्योपमार्द्धहीनमिताः ॥ २८ ॥ अर्थ- भवनवासीयोंमें असुरकुमार, नागकुमार, सुपर्णकुमार, द्वीपकुमार और शेषके ६ कुमारोंकी आयु क्रमसे १ सागर, ३ पल्य, 2 1⁄2 पल्य २ पल्य और 1 1⁄2 पल्य है ॥२८ ॥ वैमानिक देवोंकी उत्कृष्ट आयु - 1 सौधर्मेशानयोः सागरोपमे अधिके ॥ २९॥ 1. यद्यपि भवनवासियोंके बाद व्यन्तर और ज्योतिष्क देवोंकी आयु बतलानेका क्रम हैं तथापि लाघवके ख्यालसे यहाँ क्रमभंग कर वैमानिक देवोंकी आयु बतला रहे है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001795
Book TitleMokshshastra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorPannalal Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, P000, P005, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size12 MB
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