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________________ ७०] माक्षशास्त्र सटाक कल्पोंका स्थितिक्रम उपर्युपरि ॥१८॥ अर्थ- सोलह स्वर्गोके आठ युगल, नव ग्रैवेयक, नव अनुदिश और पांच अनुत्तर ये सब विमान क्रमसे ऊपर ऊपर हैं ॥१८॥ वैमानिक देवोंके रहनेका स्थानसौधर्मेशानसानत्कुमारमाहेन्द्र ब्रह्मब्रह्मोत्तरलान्तवकापिष्ठशुक्रमहाशुक्र सतार सहस्रारेष्वानत प्राणतयोरारणाच्युतयोर्नवसुप्रैवेयकेषु विजय वैजयन्तजयन्तापराजितेषु सर्वार्थसिद्धौ च।१९। ___अर्थ-सौधर्म-ऐशान, सानत्कुमार-माहेन्द्र, ब्रह्म-ब्रह्मोत्तर, लान्तवकापिष्ठ, शुक्र-महाशुक्र, सतार-सहस्त्रार इन छह युगलोंके बारह स्वर्गोमें, आनत-प्राणत, इन दो स्वर्गोंमें, आरण-अच्युत इन दो स्वर्गोमें, नव ग्रैवेयक 'विमानोमें, नव अनुदिश' विमानोंमें और विजय वैजयन्त जयन्त अपराजित तथा सर्वार्थसिद्धि इन पांच अनुत्तर विमानोमें वैमानिक देव रहते है। नोट- इस सूत्रमें यद्यपि अनुदिश विमानोंका पाठ नहीं है तथापि 'नवसु' इस पदसे उनका ग्रहण कर लेना चाहिये ।। १९ ॥ - वैमानिक देवोंमें उत्तरोत्तर अधिकतास्थितिप्रभावसुखद्युतिलेश्याविशुद्धीन्द्रिया वधि विषयतोऽधिकाः ॥२०॥ 1. नवग्रेवेयक - सुदर्शन. अमोघ. सुप्रबुद्ध, यशोधर. सुभद्र, विशाल. सुमन. सौमनस और प्रीतिकर। 2. नव अनुदिश. आदित्य. अचि. अर्चिमाली. वैरोचन. प्रभाम. अचिप्रभ, अर्चिाध्य. अचिरावत और अचिंविशिष्ट। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001795
Book TitleMokshshastra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorPannalal Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, P000, P005, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size12 MB
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