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________________ माक्षशास्त्र सटीक इन्द्र -जो देव दूसरे देवोंमें नहीं रहने वाली अणिमा आदि ऋद्धियोंसे सहित हों उन्हें इन्द्र कहते हैं। ये देव, राजाके तुल्य होते हैं। सामानिक-जिनकी आयु वीर्य भोग उपभोग आदि इन्द्रके तुल्य हों, पर आज्ञारूप ऐश्वर्यसे रहित हों, उन्हें सामानिक कहते हैं। त्रायस्त्रिंश- जो देव मन्त्री पुरोहितके स्थानापन हों उन्हें त्रायस्त्रिंश कहते हैं। ये देव एक इन्द्रकी सभामें तेतीस ही होते हैं। पारिषद- जो देव इन्द्रकी सभामें बैठनेवाले हों उन्हें पारिषद कहते हैं। आत्मरक्ष- जो देव अंगरक्षकके सद्दश होते हैं उन्हें आत्मरक्ष कहते हैं। लोकपाल- जो कोतवालके समान लोकका पालन करते हैं उन्हें लोकपाल कहते हैं। अनीक- जो देव पदाति आदि सात तरहकी सेनामें विभक्त रहते हैं वे अनीक कहलाते हैं। प्रकीर्णक- जो देव नगरवासियोंके समान हों उन्हें प्रकीर्णक कहते हैं। आभियोग्य- जो देव दासोंके समान सवारी आदिके काम आवें वे आभियोग्य हैं। किल्विषिक- जो देव चाण्डालादिकी तरह नीच काम करनेवाले हों उन्हें किल्विषिक कहते है। व्यन्तर और ज्योतिषी देवोंमें इंद्र आदि भेदों की विशेषता त्रायस्त्रिंशलोकपालवा व्यन्तरज्योतिष्का: ५ अर्थ- व्यन्तर और ज्योतिषी देव त्रायस्त्रिंश तथा लोकपाल भेद से रहित हैं ॥५॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001795
Book TitleMokshshastra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorPannalal Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, P000, P005, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size12 MB
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