________________
92 / सूक्तरत्नावली नहीं करता है ? अर्थात् कर लेता है (जलयान के संसर्ग वश)
दुरात्मानश्चिरायुष्काः, प्रायशः स्युर्न चेतरे । चिरजीवित्वसंयुक्ता, वायसा न सितच्छदाः ।। 377 ||
। प्रायः सज्जनों की अपेक्षा कलुषित आत्माओं की आयुष्य लम्बी होती है। जैसे कौए का जीवन लम्बा होता है, सफेद पंख वाले सारस, हंस आदि का नहीं। शुचयो मण्डनं जन्म,-भूमिगा वा परत्रगाः। दन्ता दन्तिमुखे भूषा, करे वा हरिणीदृशाम्।। 37811
पवित्र व्यक्ति जन्मभूमि पर विचरते है अथवा अन्य स्थान पर वे हमेशा शोभित ही होते है। दाँत हाथी के मुख में हो अथवा सुन्दर स्त्री के हाथ में (आभूषण के रुप में) शोभित ही होते हैं।
परिवारे प्रभूतेऽपि, दु:ख दुर्दै वदण्डिनाम् । छिद्यन्ते नहि बुब्बूलाः, कोटिशः कण्टकेषु किम्? ||379 || ___बहुत परिवार होने पर भी दुर्भाग्य का दुख वृद्ध व्यक्तियों को ही होता है। करोड़ों काँटे होने पर भी क्या बबूल का वृक्ष काटा नहीं जाता
महापरिकराकीणों, लघीयानपि सत्फलः । बृहद्दलायां रम्भायां, लयां किं नामृतं फलम्? ||38011
चारों ओर व्याप्त होने पर भी छोटे फल अच्छे होते हैं। बहुत संख्या में केले के फल छोटे होने पर भी क्या अमृत फल नहीं होते है? त्वरयैव व्ययं याति, ज्योतिष्मानप्यसारभूः। तृणाज्जातस्य यद्वः, कियती स्यादवस्थितिः? ||38111
इस असार संसार में प्रकाशवान् व्यक्ति भी शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं। अग्नि में गये हुए तिनकों की स्थिति कितनी होती है ?
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org