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सूक्तरत्नावली / 91
अंशोऽपि दुष्टदृष्टीना, - मन्येषां स्याद्विनाश. त् । व्याघ्राणां वाललेशोऽपि जग्धो जीवितहानये | |372 ||
दुष्ट-दृष्टि की एक किरण भी अन्यों का नाश करने वाली हो सकती है। बाघों के बालों का लेश मात्र भी खाये जाने पर उनके प्राणों की हानि हो सकती है।
अतिस्वच्छात्मनामन्त, - वृत्तिर्विज्ञायते सुखम् । वस्तुतः काचपात्रान्त, - र्गतस्यावगमो न किम् ? | 1373 | |
अति पवित्र आत्मा के अन्दर की वृत्ति सरलता से जानी जा सकती है। काँच पात्र के अन्दर रखी हुई वस्तु का ज्ञान क्या नही होता है ? हो जाता है ।
अन्तर्निहितसाराणां गोपने प्रीतिरुत्तमा । यदीक्ष्यते महान् यत्नो, हृत्पिधाने मृगीदृशाम् । ।374 । ।
अन्दर गर्भित सार को गुप्त रखने पर उसके प्रति और अधिक प्रीति हो जाती है। सुंदर स्त्री को अपने हृदय को ढँकने में बहुत प्रयत्न करते हुए देखा जाता है ।
प्राप्तः परप्रियापार्श्व, कलावानपि दुर्गतः । क्षीणत्वं याति किं नेन्दुः पूर्वदिग्भागमागतः ? | | 375 ।।
कलावान् व्यक्ति भी परप्रिय के पास जाने पर दुर्गति को प्राप्त करता है। पूर्व दिशा की ओर आया हुआ चन्द्रमाँ क्या क्षीणत्व को प्राप्त नहीं होता ?
कर्कशा अपि सत्पात्र, - संगताः पारगामिनः । नाम्भोधिं यानपात्रस्था, दृषदोऽपि तरन्ति किम्? | 1376 ।।
सज्जन पुरुषों के संग करने से दुष्ट व्यक्ति भी पारगामी (तर जाते हैं) हो जाते हैं। क्या जलयान में रखा हुआ पत्थर समुद्र को पार
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