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सूक्तरत्नावली / 65 भी दुष्टता की ओर जाते है। पापी ग्रहों के संग बुध ग्रह पापी बन जाता
गुण: स्वल्पोऽपि संपत्त्यै, सखे ! दोषजुषामपि। सर्वांगैर्भग्नभद्राया, भद्रायाः पुच्छमृद्धिकृत्।। 242।।
दोष को धारण करने वाले व्यक्तियों के अल्पगुण भी समृद्धि के लिए होता है। जैसे भद्रा के सभी अंग भग्न होने पर भी भद्रा की पूँछ वृद्धि (धन आदि) कराने वाली होती है।
दौःस्थ्यं दोषास्पदं शश्वत्, स्यात् कलाशालिनामपि। ....कान्तोऽप्यमवत्पापः, शशांकः क्षीणवैभवः ।। 243||
कलाशाली व्यक्तियों का भी दौर्भाग्य में दोष का स्थान सदा रहता है। दौर्भाग्य होने पर चन्द्रमाँ का वैभव भी क्षीण होता है एवं कान्ति भी समाप्त हो जाती है। कृत्यं भवति नीचानां , यच्च नीचैर्न चेतरैः। कारूणामर्थसिद्धिर्या, खरैः सा च न सिन्धुरैः ।।244||
नीच व्यक्तियों का कार्य नींच के द्वारा ही होता है। अन्य सज्जन व्यक्ति द्वारा नहीं। कारू की सिद्धि गधों से ही होती है हाथियों से नहीं। तुच्छानां वक्रता तुगै,-निराकर्तुं न शक्यते। केशेषु पतितो ग्रन्थिः, कुंजरैः किं निरस्यते? ||24511
तुच्छ व्यक्तियों की वक्रता का निराकरण करने के लिए उच्च व्यक्ति समर्थ नहीं होते हैं। बालो में पड़ी गाँठ क्या हाथियों से नष्ट होती है ? कदाचिन्नातिनीचाना, संस्कारोऽपि गुणावहः । क्षालनं कम्बलानां स्या,-द्यद्विनाशाय सत्वरम् ।।246।।
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