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________________ 64 / सूक्तरत्नावली को जीतने वाले भगवान् शंकर को वस्त्रादि से रहित होने पर छोड़ दिया था ? महात्मानो विरोधाय, संगभाजो जडात्मभिः । चन्द्रयुक्ता ग्रहाः सर्वे, विवाहेऽनर्थहेतवः।। 237 ।। मूर्ख व्यक्तियों का संग महान व्यक्तियों के संकट के लिए होता है। चन्द्र से युक्त ग्रह विवाह में अनर्थ के हेतु होते हैं। यन्त्रणं युक्तिमज्जाने, स्तब्धानां चासितात्मनाम् । यत्सरोजदृशां बन्धः कुचेषु चिकुरेषु च।। 238।। ग्रन्थकार कहते है - मैं अपवित्र मन वाले मूर्ख व्यक्तियों को अनुशासित करने को समीचीन मानता हूँ। क्या कमल-नयनी युवतियों के कुचों एवं केशों का बन्धन उपयुक्त एवं सौन्दर्य वाहक होता हैं। मूर्खाणामधिकत्वं स्या,-दुत्तमेषु प्रमादिषु । जगज्जातजडं जज्ञे, यत्सुप्ते पुरूषोत्तमे।। 239 ।। उत्तमपुरुषों के प्रमादी होने पर मूों की अधिकता हो जाती है। उत्तमपुरुषों के पुरुष सोने पर (देवशयनी एकादशी) होने पर जल की व्याप्ति (जल की अधिकता) हो जाती है। बुद्धिमानपि निर्बुद्धेः, संगतः स्याज्जगद्रिये । वर्यकार्यनिषेधी यद् , गुरू: केशरिणं गतः।। 24011 निर्बुद्धि के संग रहे बुद्धिमान व्यक्ति भी जगत् के संताप के लिए होते है। सिंह राशि में गया हुआ गुरु श्रेष्ठ कार्य के लिए निषेधी माना जाता है। धिग दुष्टान् यान्ति स(योत्संगा,-न्महात्मानस्तदात्मताम्। प्रययौ पापतां पाप,-ग्रहसंगेन यद् बुधः ।। 24111 . उन दुष्ट आत्माओं को धिक्कार है जिनके कारण महान व्यक्ति कन्छ800058889390060380 R Rsonam 00000000000000000cccccccc0000000000000000000000000000ठमाठठकठठवा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001793
Book TitleSuktaratnavali
Original Sutra AuthorSensuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2008
Total Pages132
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size7 MB
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