________________
62 / सूक्तरत्नावली द्विजिह्वाधिष्टितः स्वामी, न क्लेशाय कलावताम्। कर्णाभ्यर्णस्थदृक्कर्णः, किमीशः शशिनो भिये? ||227 ।।
__कलावान् व्यक्तियों के पास रहा हुआ सर्प उनके क्लेश के लिए . नहीं होता है। शिव के कान के पास स्थित सर्प क्या चन्द्रमा के भय के लिए होता है ?
असंभाव्यमपि प्रोक्तं, पूर्वैः स्यादतिसूनृतम् । पार्वती प्रस्तरापत्यं , सत्यमित्यवसीयते।। 228 ।।
पूर्वजों के द्वारा कहा गया असंभव असत्य भी सत्य माना जाता है। पार्वती पर्वत की पुत्री है ऐसा सत्य जाना गया है। गुणाः सौन्दर्यशौर्याद्याः, साक्षरत्वं विना वृथा। सौवर्ण स्यादपि स्वर्ण, किं विनाक्षरसंचयम् ? ||229 ।।
__ सुन्दरता, वीरता आदि गुण साक्षरता बिना (विद्याध्ययन बिना) व्यर्थ माने जाते है। क्या अक्षरों के (वर्गों के) संयोजन बिना स्वर्णिम होने पर भी सुवर्णता प्राप्त की जा सकती है ? अर्थात् नहीं। महतां जननस्थान,-मुक्ति रुन्तये भवेत् । विन्ध्यत्यजां गजानां किं, नारात्रिकं नृपाजिरे? ||23011 __महान् व्यक्तियो की जन्मस्थान से मुक्ति उनकी उन्नति के लिए होती है। विन्ध्य पर्वत को छोड़ने वाले हाथियों की राजा नम्र होकर क्या आरती नही करते ?
सर्वतः स्याद्विनष्टोऽपि, गरीयान् गौरवास्पदम्। यदश्मा ज्वलितस्तूर्ण, चूर्णोऽभूद् भूपवल्लभः ।।231।।
सर्वतः नष्ट हो जाने पर भी महान् लोगों का गौरव श्रेष्ठ बना रहता है। जो पत्थर जलकर शीघ्र चूर्ण हो जाता है वह राजाओं को प्रिय होता है। (मणि आदि बहुमूल्य पत्थर)
SWORDDEDROORPOROT00000000000000
100000000000000000000000000000000000000000000००००००००००००००००००00000000000000000000000000000000000000000000000000
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org