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__सूक्तरत्नावली / 61
दानी व्यक्ति धन देते हुए धन के व्यय का चिंतन नहीं करते हैं। . क्या केले का वृक्ष फल उत्सर्जन के समय उनके नाश का चिन्तन करता है ? लोगों द्वारा उसके फल काट लिये जाते है तब भी वह उनके विनाश का चिंतन नहीं करता है।
अचेतनोऽपि तुगांत्मा, श्रितो दत्ते निजं गुणम्।। अधस्तात्तस्थुषां शोक,-नाशायाशोकभूरुहः ।। 223 ।।
उच्चआत्मा अज्ञानी होने पर भी अपने आश्रित व्यक्तियों को अपने गुणों का दान देता है। अशोक वृक्ष अपने तल में रहे हुए प्राणियों के शोक का नाश करता है।
लभन्ते वाग्मिनो मानं , दुर्दशायां स्थिता अपि। कीर: पन्जरसंस्थोऽपि, हारिगीरिति पाठ्यते।। 224||
दुर्दशा में होने पर भी बोलने में चतुर व्यक्ति सम्मान को प्राप्त करते है। पिंजरे मे रहा तोता हरि नाम का पाठ करता है एवं प्रशंसा प्राप्त करता है।
आस्तां वाक् प्रीतये प्रोच्चै,-र्निध्यातोऽपि कलानिधिः । किमीक्षितो मुदं दत्ते, न चकोरदृशां शशी?||225।।
ज्ञानी व्यक्तियों की वाणी तो दूर रही उनका ध्यान भी प्रीति करने वालो के लिए आनन्द का कारण होता है। चन्द्रमा को देखने पर चकोर की दृष्टि क्या आनन्द को प्राप्त नहीं होती ? अर्थात् आनन्दित हो जाती है। - अयुक्तमपि युक्तं त,-द्यच्चिरन्तनवाङ्मये । ___नदी व्योमनि तत्रापि, सरोजिनीति संमतम् । 1226 ।।
पुराने समय से चली आ रही अयुक्त बातों को भी युक्त मान लिया जाता है। आकाश में नदी है वहाँ भी कमलिनी है ऐसा स्वीकार किया गया है।
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BOORNOOOOOOOOOOON
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