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सूक्तरत्नावली / 57
होता है । समान भार निर्वाह होने पर भी बॉये स्थित (बॉयी तरफ जुते हुए) बैल में गौरव होता है ।
महतामपि दुर्माचा, दुष्टतान्तर्विवर्तिनी । किमाम्रैरमृतात्कम्रै, -र्मुमुचेऽन्तः कठोरता ? । । 204 । ।
महान् व्यक्तियों के भीतर रहने वाली कठोरता (दुष्टता) अत्यन्त कठिनाई से भी छूट नहीं पाती हैं। वे उसे समूल छोड़ नहीं सकते है । क्या मधुर रस लिये हुए आम्रफल ( पका फल) अपने भीतर स्थित कठोरता (गुठली के रुप में) को छोड़ पाया है ? अर्थात् नहीं । स्थानके भूयसीं शोभा, मपि सद्वस्तु गच्छति । स्त्रीद्दशोरंजनस्य श्री, - र्या न सा नरचक्षुषोः ।। 205 ||
उचित स्थान में स्थित वस्तु ही अत्यधिक शोभा पाती है। स्त्री के नेत्रों मे अंजन की जो सुंदरता होती है वह पुरुष के नेत्रों में नहीं होती है।
स्थाने यच्छोभनं वस्तु, कुस्थाने स्यात्तदन्यथा । वालाः पुंसां मुखे शस्ता, स्तुण्डे स्त्रोणामनर्थदाः । 1206 ।।
जो वस्तु किसी स्थान में शोभित है, वही कुस्थान मे अशुभ हो जाती है। पुरुषों के मुख पर बाल प्रशंसनीय है किंतु स्त्रियों के मुख पर अशुभ होते हैं।
श्रेयानपि स्थितः पापैर् (पापे), गुणोऽन्येषां भयावहः । ऊर्णनाभे कुविन्दत्वं, मक्षिकाणामनर्थकृत् ।। 207 ||
पापी व्यक्ति में स्थित सर्वोत्तम गुण भी अन्यव्यक्तियों के लिए भयावह होता है । जैसे मकड़ी की नाभि में रही जाल बुनने की शक्ति मक्खियों के लिए अनर्थकारी होती है ।
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