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________________ 54 / सूक्तरत्नावली धारण करता है। क्या सान पर चढ़ाई गयी तलवार चमकीली नहीं होती ? धत्ते शोभा विशेषेण, जडोऽप्यत्युग संगतः। मिलितं किं श्रियं याति, पानीयं नासिधारया ?||189।। मूर्ख व्यक्ति भी भद्र व्यक्ति की संगत से विशेष रुप से शोभा को धारण करता है। क्या सान पर चढ़ी हुई तलवार से संसर्गित पानी कल्याण को नहीं प्राप्त करता है ? एको दुर्जनदृग्वारी, दोषो विदुषि जायते। रेखा स्याद् बालभालस्था,-जंनी दृग्दोषवारिणी। 119011 दुर्जन व्यक्ति मात्र दोषदृष्टि निवारण करने से विद्वान बन जाता है। जैसे आँखों मे काजल की एक रेखा नेत्र-दोष का निवारण कर देती है। पापः सतां समान्तःस्थो रक्षिता तदगुणश्रियाम् । न किमन्तर्गतोऽगारः, पाति कर्पूरसंपदम् ?।। 191।। सज्जन व्यक्तियों की सभा मे स्थित पापी व्यक्ति के भी गुणों की रक्षा होती है। अंगारे के अन्दर क्या कपूर की सम्पत्ति की रक्षा नहीं होती है ? तुंगानामापदं हतु, तुंगा एव भवन्त्यलम् । समर्थास्तोयदा एव, तापं हतु महीभृताम् ।। 192|| उच्च व्यक्तियों की विपत्ति को हरने के लिए उच्चव्यक्ति ही समर्थ होते है। जैसे पर्वतों के ताप को हरने के लिए बादल ही समर्थ होते है। कलावन्तो विशिष्यन्ते, पुरतोऽपि प्रभाभृताम् । सति सूरे शशी तस्मिन् सति नान्यश्च दृश्यते।।193।। 80000000000388000000000000000000000000008888888885600000000000000000000 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001793
Book TitleSuktaratnavali
Original Sutra AuthorSensuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2008
Total Pages132
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size7 MB
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