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________________ 48 / सूक्तरत्नावली बन जाते हैं। जैसे पुष्पों में सम्मिलित तिल भी तदाकार मय हो जाते हैं (उनका भी समान भाव से आदर होता है।) वाचोऽपि जडतः प्रादु.-भूताः सन्तापहेतवे। जाता जीमूततो विद्यु-न्न स्यात् किं दाहदायिनी? ||159 ।। वाणी जड़ हवाणी ोते हुए भी सन्ताप का कारण उत्पन्न करने वाली होती है। क्या बादल (बादल की गड़गड़ाहट) से अग्नि देने वाली विद्युत् उत्पन्न नहीं होती ? क्षुद्रात्मानोऽन्तरागत्य, सृजन्ति महतां क्षितिम् । मशकाः करिकर्णान्तः, प्रविश्य नन्ति तं न किम्? ||16011 क्षुद्रआत्मा महान् व्यक्ति के जीवन में प्रवेशकर उनकी महानता का नाश कर देता है। क्या मक्खी हाथी के कान मे प्रवेश कर उसका नाश नहीं करती है ? अर्थात् करती है। स्यादपि स्वल्पसत्त्वानां, भूयसी भीमहात्मनाम् । मशका यान्तु मा श्रुत्यो,-भियेतीभश्चलश्रवाः ।। 161|| महान् व्यक्तियों को अल्पसत्त्व से भी अपेक्षाकृत अधिकभय होता है। हाथी डरता है कि, "मक्खी कान में न चली जाए" इस कारण कानों को हिलाता रहता है। महान् सद्यः समुत्पन्नो,-ऽप्युपकाराय भूयसे । व्यजनोद्भूतोऽपि वातः, शैत्यं धत्ते न किं द्रुतम् ?||16211 ____ महान् व्यक्ति उपकार के लिए शीघ्र तैयार रहते है। क्या पंखे से उत्पन्न हवा शीघ्र शीतलता नहीं देती है ? महस्विनोऽप्यवश्यं स्यात्, तुच्छात्माऽनर्थकारणम् । तृणलेशेऽन्तःपतिते, बाष्पपातो न किं दृशोः?11163।। तुच्छ व्यक्ति अवश्य महान् व्यक्तियों के अनर्थ का कारण होता ठळक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001793
Book TitleSuktaratnavali
Original Sutra AuthorSensuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2008
Total Pages132
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size7 MB
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