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ममाशीर्वचनम्
साहित्य सृजन परम्परा में हमारे जैनाचार्यों का जो योगदान रहा है वह अनिर्वचनीय है । अनेक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ उपलब्ध होते हैं । उनमें अभी कई ग्रन्थ अप्रकाशित भी हैं। प्राचीनकाल से लेकर मध्यकाल तक लिखित ग्रन्थों में योग, अध्यात्म, ज्योतिष, सामुद्रिक आदि अनेक विषयों पर निरूपित ग्रन्थों में कई ग्रन्थ अनुपलब्ध भी हैं । शोधकारों का विषय है कि वे ऐसे ग्रन्थों को प्रकाश में लाने का अभिनन्दनीय प्रयास करें ।
म.
मुगल सम्राट् अकबर के प्रतिबोधक श्री हीरविजय सूरीश्वरजी के पट्टप्रभावक शिष्यरत्न आचार्य श्री विजयसेन सूरीश्वरजी म. ने भी अनेक ग्रन्थों की रचना की है। उनकी सम्पूर्ण रचनाएँ अभी भी प्रकाश में नहीं आ पाई हैं ।
मम समुदाय वर्तिनी साध्वीजी रुचिदर्शनाश्रीजी अल्प वयस्क होते हुए भी अध्ययन में पूर्ण दक्षता से संलग्न हैं, वहीं उनकी ज्ञानार्जन रुचि एवं अध्ययन परायणता सुन्दरतम है। अध्ययनशील साध्वीजी ने आचार्य विजयसेन सूरीश्वरजी म. लिखित 'सूक्त रत्नावली' ग्रन्थ का हिन्दीभाषा में अनुवाद कर सामान्य जन समुदाय के सम्मुख प्रस्तुत कर श्रेष्ठ कार्य किया है ।
सूक्तरत्नावली / 3
मैं अपनी ओर से साध्वीजी के इस प्रयास की ह्रदय से सराहना करते हुए उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूँ एवं उत्तरोत्तर ज्ञानार्जन करती अपने जीवन में समुन्नत पथ की ओर अग्रसर हों, ऐसा आशीर्वाद देता हूँ ।
गुन्टूर दिनांक 07.09.2008
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Gamba (आचार्य श्री विजय जयन्तसेन सूरि )
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