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40 / सूक्तरत्नावली
गुणा गौरवमायान्ति, तद्विदां पुरतः सखे ! | काम्यन्ते कोविदैरेव, काव्यानां कठिनोक्तयः । । 118 ।।
विद्वान् व्यक्तियों के गुणों द्वारा चारों ओर से गौरव की प्राप्ति होती है। काव्यों की कठिन ऊक्तियाँ ज्ञाता कवियों द्वारा पसंद की जाती है।
दूरतः परिगच्छन्ति, शुद्धात्मानस्तिरस्कृताः । पातिताः प्रतिकुर्वन्ति, नोद्गमं दशनाः खलु ।। 119 ।।
तिरस्कृत किये हुए शुद्धआत्मा दूर से ही चले जाते हैं। प्रतिकार करने पर गिरे हुए दाँत निश्चित ही फिर नहीं आते हैं। प्रत्यर्थिनो हि हन्यन्ते, विना स्थानं महस्विभिः । स्वयमर्चिषि दीपस्य, पतंगा न पतन्ति किम् ? ।। 12011
तेजस्वी व्यक्तियों द्वारा प्रतिकार के बिना भी शत्रुगण मारे जाते हैं। क्या पतंगा दीपक की लौ पर स्वयं नहीं गिरता है ? अर्थात् स्वयं गिरकर मर जाता हैं।
भाविनोऽपि प्रयच्छन्ति, गुणा गौरवमांगीनाम् । गुणानां बीजमिति यत्, कर्पासो मूल्यमर्हति । । 121 ।।
गौरवशाली व्यक्तियों के गुणों की होनहार व्यक्ति अपेक्षा करते है । अपने गुणों के कारण ही कपास के बीजों का भी मूल्य होता है । अप्युषितः समं मूर्खे, -र्वाग्मी नोज्झति वाग्मिताम् । काकपाकान्तिकस्थोऽपि, कलकण्ठः कलध्वनिः । । 122 ।।
मधुर बोलने वाला व्यक्ति भी मूर्ख के समान अपनी वाणी को व्यर्थ करता है एवं बोलना नहीं छोड़ता है। कौए के पास बैठा हुआ कोयल का शिशु मधुर कण्ठ होते हुए भी कल ध्वनि करना नहीं छोड़ता ।
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