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38 / सूक्तरत्नावली
लाल होते हैं एवं अंजन से आँखों की किरकिरी श्यामता को प्राप्त करती है।
लभन्ते सुभटाः संपद्,-भरं व्यंगितविग्रहाः। विद्धयोः कर्णयोरेव, यत्स्वर्णमपि(णि)कुण्डले।।108 ।।
सैनिक अंग भंग होने पर भी सम्पत्ति को प्राप्त करता है। छेदित कानों में ही स्वर्ण के कुण्डल पहने जाते हैं। गुणवद्गौरवं याति, दोषो ज्योतिष्मतां सखे !। दृशां स्फारासु तारासु, श्यामिका शस्यते न कैः ? ||109 ।।
हे सखे ! दिव्य व्यक्ति के गुण के समान दोष भी गौरव को प्राप्त करते है। क्या आँखो की कनीनिका में फैली कालिमा प्रशंसित नहीं होती है ?
उत्तुंगेषु रुषं कुर्वन्, भवेत् स्वयमनर्थमाक् । शरमेण मृतिर्लेभे, कुपितेन घनोपरि।। 110 ।।
उच्च व्यक्तियों पर क्रोध करने पर स्वयं का अनर्थ होता है। कठोर लोहे के उपर क्रोधित हाथी का बच्चा स्वयं मरण को प्राप्त हुआ। क्वचित् पिधत्ते मन्दोऽपि, प्रभाभाजामपि प्रभाम् । न किं पिदधिरे धूम, योनिना भानुभानवः ? || 111||
कभी-कभी प्रकाशवान् व्यक्ति के प्रकाश को मन्दव्यक्ति भी ढंक देता है। क्या सूर्य की किरणे बादलों की घटाओं द्वारा ढंकी नहीं जाती? सखे ! यति सौभाग्य,-मशुद्ध ष्वेव रागवान् । सीमन्तिनीनां सीमन्ते, सिन्दूरं शुशुभे न किम् ?||112।।
रागी व्यक्ति सौभाग्य के लिए अशुद्ध वस्तु को भी आश्रय देता
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