SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 28
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 26 / सूक्तरत्नावली नीचानां वचनं चारु, प्रस्तावे जल्पतां सताम्। प्रीतिकृत् प्रस्थितानां हि, वाम गर्दभगर्दितम्।। 49 ।। सज्जन व्यक्तियों के बोलने के अवसर पर नीच व्यक्तियों का वचन भी सुंदर होता है। जैसे प्रस्थान वालों की बॉई ओर गधे की आवाज प्रीतिकर होती है। लघोरपि वचो मान्यं, समये स्याद् महात्मनाम् । प्रस्थितैर्वामदुर्गायाः, शब्दः श्रेयानुदीरितः।। 5011 महान् आत्माओं के द्वारा अवसर पर छोटे व्यक्तियों का वचन भी मान्य होता है। जैसे प्रस्थान के अवसर पर बाँई और दुर्गा पक्षी के शब्द कल्याणकारी कहे गये हैं। स्थानभ्रष्टोऽपि शिष्टात्मा, लभेन्मानमनर्गलम्। खानेश्च्युतो मणिभूमु.-न्मूर्धानमधिरोहति।। 51।। पद के नष्ट होने पर भी शिष्ट व्यक्ति मान प्राप्त करता है। जैसे खान से च्युत् होने पर मणि राजा के सिर पर धारण की जाती है। मध्ये मेधाविनां मात्,-मुखानां मानमर्हति। कोकिलान्तर्गताः काकाः, कोकिला एव यद्वशात्।।52।। बुद्धिमान् लोगों के बीच मूर्ख लोग भी सम्मान के योग्य हो जाते हैं। जैसे कोयलों के बीच कौआ भी कोयल जैसा ही मान पाता है। न मौनं वाग्मिनां शस्तं, वाक्कलाकुशलात्मनाम् । अकूजन् कोकिलो लौकैः, काकोऽयमिति गीयते।।53 ।। ____ बोलने की कला में प्रशंसित कुशल व्यक्ति हो या अकुशल हो .. दोनों ही मौन नहीं रहते है। संसार मे कोयल भी बोलती है और कौए भी बोलते हैं। POO O OOOOOOHOR O mpa. 000000058000000 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001793
Book TitleSuktaratnavali
Original Sutra AuthorSensuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2008
Total Pages132
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy