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________________ 116 / सूक्तरत्नावली 966086868808882 दाने शक्तिः श्रुते भक्ति,-गुरूपास्तिर्मुणे रतिः। दमे मतिर्दयावृत्तिः, षडमी सुकृतांकुराः ।। 490 ।। दान में शक्ति (दान देने की प्रबल भावना) शास्त्र श्रवण में भक्ति अथवा प्रीति, गुरु में उपासना, सद्गुणों में अनुराग, इन्द्रिय संयम मे बुद्धिलगाना, प्राणिमात्र के प्रति दया के भाव, ये छ: पुण्यरूपी बीज के अंकुर कहे जाते हैं। जैनो धर्मः कुले जन्म, शुभ्रा कीर्तिः शुभा मतिः । गुणे रागः श्रियां त्यागः, पूर्वपुण्यैरवाप्यते।। 49111 जैन धर्म का पालन, सत्कुल में जन्म, धवल यश, कल्याणमयबुद्धि, गुणार्जन में आसक्ति एवं धन या, लक्ष्मी का दान करने की प्रवृत्ति से सभी दिव्यगुण पूर्वजन्म में किये हुए पुण्यों के परिणाम स्वरूप मनुष्य को प्राप्त होते हैं। देवो दलितरागारि,-गुरूस्त्यक्तपरिग हः । धर्मः प्रगुणकारूण्यो, मुक्तिमूलमिदं मतम्।। 492|| .. राग आदि का नाश करने वाले देव, परिग्रह का त्याग करने वाले गुरु, प्रकृष्ट करुणामय धर्म ये तीनों मुक्ति के मूल माने जाते हैं। आरोग्यं दत्तसौभाग्यं, जीवितं कीर्तिपावितम्। भोगान् सुभगसंयोगान्, लभन्ते धर्मकर्मठाः।। 493|| सौभाग्यपूर्ण आरोग्य, यश से पवित्र जीवन (यशमय जीवन) संयोग-वश प्राप्त भोगों का उपभोग ये तीनों धर्म मे कर्मठ व्यक्तियों को प्राप्त होते हैं। सन्ततिः शुद्धसौजन्या, विभूतिर्मोगभासुरा। विद्या विनयविख्याता, फलं धर्मतरोरिदम् ।। 492|| पवित्र चरित्र रूपी सौभाग्य-सम्पन्न सन्तान, सत् उपभोग से GHOSD83068086660868800BSCRSSSSSONS8888888800900BCN 58888888888NOSHOBHOSDHONOROSC888888888888888888888888888888888888888888888888888888880000001 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001793
Book TitleSuktaratnavali
Original Sutra AuthorSensuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2008
Total Pages132
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size7 MB
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