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राजप्रश्नीयसूत्र में सर्वप्रथम आमलकल्पा नगरी, उसके चैत्य, वहाँ के राजा 'सेय' एवं रानी 'धारिणी' का वर्णन है। फिर आमलकल्पा नगरी में भगवान महावीर के पदार्पण और राजा के उनके दर्शनार्थ जाने का उल्लेख है। प्रस्तुत नगर आदि का वर्णन यहाँ इसलिए किया गया है कि सूर्याभदेव ने इसी नगर में आकर भगवान महावीर की वंदना की थी और गौतम आदि के समक्ष भगवान के जीवनवृत्त सम्बन्धी नाट्य का मंचन किया था।
तदनन्तर इस उपांग में सूर्याभदेव की महत् ऋद्धि का वर्णन किया गया है फिर देवों द्वारा आमलकल्पा नगर को स्वच्छ करने आदि के उल्लेख हैं। इसके पश्चात् सूर्याभदेव के आदेश पर सुन्दर और विशालकाय विमान-निर्माण सम्बन्धी विवरण है। इसी क्रम में सूर्याभदेव द्वारा प्रस्तुत नाट्य संगीत आदि का विवरण है। इसके पश्चात् गौतम आदि की जिज्ञासा पर सूर्याभदेव की ऋद्धि और दिनचर्या का वर्णन है, जिसमें उनके अभिषेक आदि क्रियाओं का और सुधर्मा सभा, सिद्धायतन, सूर्याभदेव द्वारा सिद्धायतन में जिन-प्रतिमाओं आदि के अर्चन, पूजन, स्तुति आदि करने का भी निर्देश है। इसके पश्चात् सूयार्भदेव के पूर्व भव में 'पएसी' राजा होने और उनकी केशीकुमार श्रमण से पुनर्जन्म, परलोक आदि सम्बन्धों में जो विस्तृत चर्चा हुई है उसका वर्णन है। तत्पश्चात् पएसी राजा द्वारा श्रावक धर्म के ग्रहण, रानी सूर्यकांता द्वारा उन्हें विष देने, उनके द्वारा समाधिमरण स्वीकार कर मरणोपरान्त सूर्याभदेव के रूप में उत्पन्न होने की कथा है। अन्त में सूर्याभदेव द्वारा देवायु पूर्ण कर महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होने तथा संयम ग्रहण कर मुक्त होने का निर्देश है। राजप्रश्नीयसूत्र में वर्णित वादन, गायन और नृत्य कला (अ) वाद्ययन्त्र
राजप्रश्नीयसूत्र में सूर्याभदेव द्वारा जिस नाटक का मंचन किया गया था, उसमें अनेक वाद्य यन्त्रों का प्रयोग हुआ था। उन वाद्य यन्त्रों का निर्देश निम्नरूप में है___शंख, शृंग, शृंगिका, खरमुही (काहाला), पेया (महतीकाला), पिरिपिरिका (कोलिक मुखावनद्ध मुखवाद्य), पणव (लघुपटह), पटह, भंभा (ढक्का), होरंभा (महाढक्का), भेरी (ढक्काकृति वाद्य), झल्लरी (चर्मविनद्धा विस्तीर्णवलयाकारा), दुन्दुभि (भेर्याकारा संकटमुखी देवातोद्य), मुरज (महाप्रमाण मदंल), मृदंग (लघु मर्दल), नंदीमृदंग (एकत: कंकीर्णः अन्यत्र विस्तृतो
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