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राजप्रश्नीयसूत्र का समीक्षात्मक अध्ययन : ७१
का अंग बना दिया है। क्योंकि पायासीसुत्त और राजप्रश्नीयसूत्र का वह अन्तिम भाग जो जीव के पुनर्जन्म, परलोक आदि को सिद्ध करता है, पर्याप्त रूप में समानता रखता है जो इस बात का प्रमाण है कि राजप्रश्नीयसूत्र का यह अन्तिम विभाग निश्चित ही ईस्वी पूर्व की रचना है। किन्तु दूसरी ओर राजप्रश्नीयसूत्र में विमान, प्रेक्षागृह, जिनमंदिर से सम्बन्धित जिन वास्तुकलाओं का चित्रण है तथा उनमें जिनपूजा-विधि के जो उल्लेख हैं वे इसे मौर्यकाल से परवर्ती तथा पूर्व गुप्तकाल का सिद्ध करते हैं। इसके साथ ही राजप्रश्नीयसूत्र में गायन, वादन और नृत्यकला के जो विकसित निर्देश उपलब्ध होते हैं, वे भी इस बात के प्रमाण हैं कि राजप्रश्नीयसूत्र के अग्रिम भाग का रचनाकाल ईस्वी सन् की तीसरी-चौथी शती के पूर्व का नहीं हो सकता है। एक ओर उसमें चिकने पालिश वाली जिस शिला का उल्लेख है, वह मौर्यकालीन पालिश का स्मरण कराती है, तो दूसरी
ओर सूर्याभदेव के द्वारा जिनपूजा के पूर्व पुस्तक रत्न के खोलने और पढ़ने के जो निर्देश हैं, वे इस बात के प्रमाण हैं कि राजप्रश्नीयसूत्र के पूर्वभाग की रचना के समय जैन परम्परा में लिखित पुस्तकों का प्रचलन प्रारम्भ हो गया था। पुनः जैसा मैंने पूर्व में कहा है कि इसमें विमान और प्रेक्षागृह की जिस वास्तुकला का तथा नृत्य, संगीत और वाद्ययंत्रों का निर्देश मिलता है वह पूर्वगुप्तकाल से पहले का नहीं हो सकता है। इस प्रकार राजप्रश्नीयसूत्र के लेखन काल का निर्धारण इसे दो भागों में बाँट कर ही किया जा सकता है। इसका उक्त भाग जो ‘पएसी' के प्रश्नोत्तर से सम्बन्धित है मौर्यकालीन है और पूर्वभाग जो सूर्याभदेव के कथानक से सम्बन्धित है वह ईसा की तीसरी-चौथी शताब्दी का होना चाहिए। फिर भी इतना तो सुनिश्चित है कि यह ग्रन्थ अपने वर्तमान स्वरूप में वलभी वाचना के पूर्व अस्तित्व में आ गया था। राजप्रश्नीयसूत्र की विषय-वस्तु
जहाँ तक राजप्रश्नीयसूत्र की विषय-वस्तु का प्रश्न है इसे मुख्यरूप से दो भागों में बाँटा जा सकता है। प्रथम भाग में सूर्याभदेव का प्रसंग है और दूसरे भाग में चित्त-सारथी की प्रेरणा से केशी कुमार श्रमण और राजा पएसी के मध्य हुए संवाद का उल्लेख है। पुन: इसके पूर्व भाग में वास्तुकला, संगीत, नाटक, वाद्ययंत्र आदि के जो विवरण उपलब्ध होते हैं, वे निश्चित ही इसके सांस्कृतिक महत्त्व को स्पष्ट करते हैं।
प्रस्तुत आलेख में हम इन तीनों ही पक्षों का संक्षिप्त उल्लेख करेंगे।
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