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________________ क्या तत्त्वार्थसूत्र स्त्रीमुक्ति का निषेध करता है? 'तत्त्वार्थसूत्र निकष' नामक कृति में प्रो. रतनचन्द्रजी जैन का 'तत्त्वार्थसूत्र में स्त्रीमुक्ति निषेध' नामक आलेख प्रकाशित हुआ है। इस आलेख में उन्होंने तत्त्वार्थसूत्र के सातवें एवं नौवें अध्यायों के दो सूत्रों को आधार बनाकर अपने मत की पुष्टि करने का प्रयत्न किया है। यहाँ हम यह विचार करेंगे कि उनके ये तर्क कितने समीचीन हैं? सर्वप्रथम उन्होंने तत्त्वार्थसूत्र के नौवें अध्याय के 'बादरसम्पराय सर्वे, (९/१२)' नामक सूत्र को आधार बनाकर यह कहा है कि नौवें गुणस्थान के संवेदभाग पर्यन्त श्वेताम्बर मान्यता के अनुसार भी बाईस परीषह होते हैं। इसका तात्पर्य यह है कि नाग्न्य परीषह भी नौवें गुणस्थान तक होता है। चूंकि स्त्री नग्न नहीं हो सकती है, इसलिए उसे नाग्न्य परीषह भी नहीं होता है। नाग्न्य परीषह के अभाव में स्त्री नौवें गुणस्थान तक भी नहीं पहुँच सकती है। अत: यह सूत्र स्त्री की मुक्ति का विरोधी है, क्योंकि मुक्ति तो १४वें गुणस्थान पर पहुँचने पर होती है। इस सम्बन्ध में प्रो. रतनचन्द्र जैन का अर्थ घटन सम्यक नहीं है। क्या उनके मंतव्य का आशय यह है कि परीषहों के सद्भाव में ही मुक्ति सम्भव है। दिगम्बर मान्यता के अनुसार केवली को भी क्षुधा परीषह एवं पीपासा परीषह नहीं होता है अतः वह भी मुक्त नहीं होगा। साथ ही यहाँ वे जिस नौवें गुणस्थान की कल्पना कर रहे हैं, वह भी उचित नहीं है, क्योंकि तत्त्वार्थसूत्र और उसके स्वोपज्ञभाष्य के काल तक गुणस्थान की अवधारणा का विकास ही नहीं हुआ था, क्योंकि उन दोनों ग्रन्थों में कहीं भी 'गुणस्थान' शब्द नहीं मिलता है। श्वेताम्बर आगमों की देवर्द्धिगणि की वलभी की ई.सन् पाँचवीं शती की जो वाचना है, वहाँ तक भी अर्धमागधी आगमों में कही गुणस्थान शब्द का प्रयोग ही नहीं हुआ है। समवायांगसूत्र में जिन चौदह जीवस्थानों का उल्लेख है वह भी परवर्ती प्रक्षेप है। वस्तुतः गुणस्थान का उल्लेख ५वीं शती से पूर्व का नहीं है। यहाँ इस सम्बन्ध में अधिक विस्तार में जाना सम्भव नहीं है। गुणस्थानों की अवधारणा का विकास Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001787
Book TitleJain Dharma Darshan evam Sanskruti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2008
Total Pages226
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size13 MB
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