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आचारांगसूत्र की मनोवैज्ञानिक दृष्टि : ६१
इस प्रकार हम देखते हैं कि जैन आचारांगसूत्र अपनी विवेचनाओं में मनोवैज्ञानिक आधारों पर खड़ा हुआ है। उत्तम आचार के जो नियम उपनियम बनाये गये हैं वे भी उसकी मनोवैज्ञानिक दृष्टि के परिचायक हैं। किन्तु यहाँ उन सबकी गहराईयों में जाना संभव नहीं है। किसी अन्य लेख में उनकी चर्चा करेंगे यद्यपि इस सम्पूर्ण विवेचना का यह अर्थ भी नहीं है कि आचारांगसूत्र में जो कुछ कहा गया है वह सभी मनोवैज्ञानिक सत्यों पर आधारित है। अहिंसा, समता
और अनासक्ति के जो आदर्श उसमें प्रस्तुत किये हैं वे चाहे मनोवैज्ञानिक आधारों पर अधिष्ठित हों, किन्तु जीवन में उनकी पूर्ण उपलब्धता की संभावनाओं पर मनोवैज्ञानिक दृष्टि से ही प्रश्नचिह्न लगाया जा सकता है। ये आदर्श के रूप में चाहे कितने ही सुहावने हों किन्तु मानव जीवन में इनकी व्यावहारिक संभावना कितनी है यह विवाद का विषय बन सकता है।
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