SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 127
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११८ ही दिगम्बर परम्परा में भी कुछ कथा ग्रन्थ हिन्दी एवं मराठी में लिखे गये हैं इसके अतिरिक्त गणेशजी लालवानी ने बंगला में भी कुछ जैन कथाएँ लिखी हैं। जहाँ तक दक्षिण भारतीय भाषाओं का प्रश्न है तमिल, कन्नड़ में अनेक जैन कथा ग्रन्थ उपलब्ध हैं, इनमें तमिल ग्रन्थों में जीवकचिन्तामणि, श्रीपुराणम् आदि प्रमुख हैं। इसके साथ कन्नड में भी कुछ जैन कथाग्रन्थ हैं, इनमें 'आराधनाकथै' नामक एक ग्रन्थ है, जो आराधनाकथाकोश पर आधारित है। इस प्रकार हम देखते हैं कि जैन कथा-साहित्य बहुआयामी होने के साथ-साथ विविध भाषाओं भी रचित है। तमिल एवं कन्नड़ के साथ-साथ परवर्तीकाल में तेलगू, मराठी आदि में भी जैन ग्रन्थ लिखे गये हैं। विभिन्न काल खण्डों का जैन कथा-साहित्य कालिकदृष्टि से विचार करने पर हम पाते हैं कि जैन कथा - साहित्य ई०पू० छठी शताब्दी से लेकर आधुनिक काल तक रचा जाता रहा है। इस प्रकार जैन कथासाहित्य की रचना अवधि लगभग सत्ताइस सौ वर्ष है । इतनी सुदीर्घ कालावधि में विपुल मात्रा में जैन आचार्यों ने कथा - साहित्य की रचना की है। भाषा की प्रमुखता के आधार पर कालक्रम के विभाजन की दृष्टि से इसे निम्न पांच काल खण्डों में विभाजित किया जा सकता है - १. आगमयुग - ईस्वी पूर्व ६ठी शती से ईसा की पाँचवीं शती तक । २. प्राकृत आगमिक व्याख्या युग - ईसा की दूसरी शती से ईसा की ८वीं शती तक। ३. संस्कृत टीका युग या पूर्वमध्य युग - ईसा की ८वीं शती से १४वीं शती तक। ४. उत्तर मध्य युग या अपभ्रंश एवं मरुगुर्जर युग - ईसा की १४वीं शती से १८वीं शती तक। आधुनिक भारतीय भाषा युग - ईसा की १९वीं शती से वर्तमान तक । भारतीय इतिहास की अपेक्षा से इन पाँच कालखण्डों का नामकरण इस प्रकार भी कर सकते हैं - १. पूर्व प्राचीनकाल, २. उत्तर प्राचीनकाल, पूर्व मध्यकाल, ४. उत्तर मध्यकाल और ५. आधुनिक काल | इनकी समयावधि तो पूर्ववत् ही मानना होगा । यद्यपि कहीं-कहीं कालावधि में अतिक्रमण है, फिर भी इन कालखण्डों की भाषाओं एवं विधाओं की अपेक्षा से अपनी-अपनी विशेषताएँ भी हैं। आगे हम इन कालखण्डों के कथा - साहित्य की विशेषताओं को लेकर ही कुछ चर्चा करेंगे - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001787
Book TitleJain Dharma Darshan evam Sanskruti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2008
Total Pages226
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy