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________________ ११६ : दिगम्बर आचार्यों की रुचि अध्यात्म और कर्म-साहित्य में अधिक रही। फलतः भगवती आराधना में संलेखना के साधक कुछ व्यक्तियों के नाम निर्देश को छोड़कर उसमें अधिक कुछ नहीं मिलता है। यद्यपि कुछ जैन नाटकों में शौरसेनी का प्रयोग अवश्य देखा जाता है, इस परम्परा में हरिषेण का बृहत्कथाकोश ही एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ माना जा सकता है, इसके अतिरिक्त आराधना कथाकोश भी है। अर्धमागधी तथा अर्धमागधी और महाराष्ट्री के मिश्रित रूप वाले आगमों और आगमिक व्याख्याओं में जैन कथाओं की विपुलता है, किन्तु उनकी ये कथाएँ मूलत: चरित्र-चित्रण रूप तथा उपदेशात्मक हैं, साथ ही वे नैतिक एवं आध्यात्मिक विकास करने की दृष्टि से लिखी गई हैं। आगमिक व्याख्याओं में नियुक्ति साहित्य में मात्र कथा का नाम-निर्देश या कथा-नायक के नाम का निर्देश ही मिलता है। इस दृष्टि से नियुक्तियों की स्थिति भगवती आराधना के समान ही है, जिनमें हमें कथा निर्देश तो मिलते हैं, किन्तु कथाएँ नहीं हैं। कथाओं का विस्तृत रूप भाष्यों की अपेक्षा भी चूर्णि या टीका साहित्य में ही अधिक मिलता है। चूर्णियाँ जैन कथाओं का भण्डार कही जा सकती हैं। चूर्णि साहित्य की कथाएँ उपदेशात्मक तो हैं ही, किन्तु वे आचार नियमों के उत्सर्ग और अपवाद की स्थितियों को स्पष्ट करने की दृष्टि से सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हैं। किन परिस्थितियों में कौन आचरणीय नियम अनाचरणीय बन जाता है इसका स्पष्टीकरण चूर्णि की कथाओं में ही मिलता है। इसी प्रकार विभिन्न परिस्थितियों में किस अपराध का क्या प्रायश्चित्त होगा, इसकी भी सम्यक् समझ चूर्णियों के कथानकों से ही मिलती है। इस प्रकार चूर्णिगत कथाएँ जैन आचारशास्त्र की समस्याओं के निराकरण में दिशा-निर्देशक हैं। जहां तक महाराष्ट्री प्राकृत के कथा-साहित्य का प्रश्न है, यह मुख्यतः पद्यात्मक है और इसकी प्रधान विधा खण्डकाव्य और महाकाव्य है। यद्यपि इसमें धूर्ताख्यान जैसे कथापरक एवं गद्यात्मक ग्रन्थ भी उपलब्ध होते हैं। इस भाषा में सर्वाधिक कथा- साहित्य लिखा गया है और अधिकांशत: यह आज उपलब्ध भी है। प्राकृतों के पश्चात् जैन कथा-साहित्य के अनेक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ संस्कृत भाषा में भी उपलब्ध होते हैं। दिगम्बर परम्परा के अनेक पुराण, श्वेताम्बर परम्परा में हेमचन्द्र का त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र आदि अनेक चरित्रकाव्य संस्कृत भाषा में लिखे गये हैं। इसके अतिरिक्त जैन नाटक और दूतकाव्य भी संस्कृत भाषा में रचित हैं। दिगम्बर परम्परा में वरांगचरित्र आदि कुछ चरित्रकाव्य भी संस्कृत में रचित है। ज्ञातव्य है कि आगमों पर वृत्तियां और टीकाएं भी संस्कृत भाषा में लिखी गई हैं। इनके अन्तर्गत भी अनेक कथाएँ संकलित हैं। यद्यपि इनमें अधिकांश कथाएं वही होती हैं जो प्राकृत आगमिक व्याख्याओं में संग्रहीत हैं, फिर भी ये कथाएं चाहे अपने वर्ण्य विषय की अपेक्षा से समान हों, किन्तु इनके प्रस्तुतीकरण की शैली तो विशिष्ट ही है। उस पर उस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001787
Book TitleJain Dharma Darshan evam Sanskruti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2008
Total Pages226
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size13 MB
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